- हेल्लो बस अभी पहुंचा और दाल भात खा रहा हूँ.
- गुड. कोई सब्जी भी बनवा लेते.
- कल देखता हूँ. या फिर वापिस आते हुए कुछ ले आऊंगा. अभी यहाँ के बाज़ार का पता नहीं लगा.
- बिस्तर कपड़े वगैरा लगा लिए?
- वो तो कितना टाइम लगता है. आज भी जी. एम. को बोला था की इतनी बड़ा विला लेकर मैं अकेला क्या करूंगा ? बताओ तीन बेडरूम, दो बाथरूम एक ड्राइंग और सब में फर्नीचर लगा रखा है, हाथी जैसा फ्रिज है. मैंने कहा किसी और को दे दो माना ही नहीं. कहता है एक साल तो रहना है आपने उसमें से भी एकाध महीना आप छुट्टी मार लोगे. कंटिन्यू.
- चलो छोड़ो आप तो टाइम पास कर लो. सिक्यूरिटी तो है ना वहां?
- सिक्यूरिटी? ये कोई दिल्ली की सोसाइटी के फ्लैट नहीं हैं.
- लोग तो रहते होंगे आसपास?
- हाँ हाँ ऐसे चार पांच विला इसी लाइन में हैं. उसके बाद खेत शुरू हो जाते हैं. पांच सौ मीटर और आगे एक बड़ा सा तालाब है. कुछ ज्यादा ही शांति है यहाँ. तू छुट्टी लेकर आजा दोनों इक्कठे हों तो यहाँ हनीमून का मज़ा है हाहाहा !
- अच्छा ! रिटायर होने वाले हो, जुल्फें उड़ चुकी हैं, तोंद बाहर निकल रही है और अब हनीमून याद आ रहा है. छुट्टी नहीं है मेरे पास अभी दो महीने तक नहीं आ सकती.
- मुझे पता था तेरा जवाब. चल बाय अभी बर्तन धोने हैं.
चंद्रा साब ने सारे दरवाज़े चेक किये और लेट गए. टीवी अभी लगा नहीं था और पढ़ने का कोई मेटेरियल नहीं था इसलिए आँखें बंद कर के सोने का प्रयास करने लगे. सोए अधसोए चंद्रा साब को लगा कोई बुला रहा है.
- सेठ ओ सेठ !
- कौन ?
- एक बीड़ी देना !
- अबे कौन है स्साला ! चंद्रा जी ने तुरंत बिस्तर छोड़ा और आवाज़ की दिशा में जाकर खड़े हो गए. कोई नहीं था पर किचन की खिड़की खुली थी. बंद करके वापिस लेट गए और फिर सुबह ही उठे. साढ़े नौ बजे ड्राईवर आ गया. बैंक जाते हुए ड्राईवर से पूछा,
- दलीप सिंह आप कहाँ रहते हो ?
- सर ये तालाब है ना उसके आगे एक गाँव है साबूवाला. वहीँ से साइकिल पर आ जाता हूँ.
- किसी दिन चलूँगा आपके साथ.
- सर आप दिन में ही चलना मेरे साथ अकेले मत आना.
- क्यों ?
- सर जी तालाब के पास ही एक शमशान है. सांझ के बाद जाना ठीक नहीं है जी.
- मतलब ?
- परेत आत्माएं घूमती हैं सर.
- हाहाहा ! तो घूमने दो यार किसी को कुछ कहती थोड़ी हैं.
- नहीं सर वो बीड़ी माचिस मांगती हैं सर !
चंद्रा साब सहम गए.
अगली रात साढ़े ग्यारह और बारह के बीच चंद्रा साब को लगा की किचन की खिड़की के बाहर कोई है. उन्होंने जोर लगा कर ऊँची आवाज़ में बोला,
- कौन है ?
- सेठ माचिस दे दे.
- ठहर तेरी तो .....
उस रात चंद्रा साब ठीक से सो नहीं पाए. सोचने लगे अगर जनरल मैनेजर को बताया तो खिल्ली उड़ाएगा कहेगा पहले भी तो इस मकान में चीफ मैनेजर अपनी फॅमिली के साथ रहता था. संतोष को बताया तो डर जाएगी और ना सोएगी ना सोने देगी.
सुबह सुबह पुराने चीफ मैनेजर को फोन लगाया,
- नरूला साब ये क्या चक्कर है ?
- हमारे साथ भी हुआ था चंद्रा साब. ड्राईवर किसी पंडित को लाया था. फिर पूजा कराई पर दुबारा परेशानी नहीं हुई.
अगली रात फिर भूत ने पौने बारह बजे माचिस माँगी और गायब हो गया.
शनिवार को चंद्रा साब ने काउंटर क्लर्क जगत सिंह को बुलाया और पूछा,
- जगत सिंह बिकुल फिट रहते हो आप ! जिम विम जाते हो क्या ?
- हाँ सर फिट तो रहना ही चाहिए.
- शादी हो गई ?
- नहीं सर.
- गुड आप भी बैचलर और मैं भी. आज का डिनर मेरे घर पे. गाड़ी में साथ ही चलेंगे.
- ठीक है सर.
चंद्रा साब ने ड्राईवर की छुट्टी कर दी. जगत को बैठाया गाड़ी में, बाज़ार से दो टोर्च और दो लाठियां खरीदी. बोतल, चखना और बटर चिकन पैक कराया और घर पहुँच गए. साढ़े दस बजे तक गपशप चलती रही. फिर साब ने जगत को प्लान बताया,
- सवा ग्यारह बजे तुम मकान के लेफ्ट में दीवार के पीछे खड़े हो जाना और मैं मकान के दाहिने छुपा रहूँगा. साढ़े ग्यारह से बारह बजे के बीच किचन की खिड़की से आवाज़ आएगी - सेठ बीड़ी दे दे या माचिस दे दे. बस उसको मिल के झपटना है. ओके ?
- ओके सर ! ये काम तो बहुत मज़ेदार है आपने पहले बताना था.
प्लान कामयाब रही और भूत पकड़ा गया. जगत सिंह के एक ही मुक्के में ड्राईवर ने उगल दिया की उसकी और पंडित जी की ग्यारह हज़ार की कमाई हाथ से निकल गई. उसने झेंपते हुए कहा,
- साब माचिस मिलेगी ?