माधव और अजीत नाम के दो भाई अर्जुननगर नाम के गांव में रहते थे। दोनों भाईयों में काफी प्यार था वो दोनों गेंहू का व्यापार किया करते थे, उनके खेतों में उगाया गया गेंहू दूर दूर तक मशहूर था लेकिन अभी भी वो दोनों मध्यवर्गीय स्थिती में ही थे और सोचा करते थे कि खेतों में दिन रात पसीना बहाने के बावजूद भी उनको वो परिणाम नहीं मिल पा रहा जो कि वो चाहते है, माधव की दो बेटियां थी और अजीत के तीन बेटे थे, उन्हें रात और दिन अपने बेटों की उच्चशिक्षा और बेटियों के शादी में होने वाले खर्चे की चिंता सताने लगी। एक दिन उन्होंने इस बारे में चर्चा भी की, तब माधव ने अजीत को अचानक याद दिलाया कि उनके पिता ने मरने से पहले शहर के दूरदराज इलाके में 5 एकड़ संतरे का बगीचा ले रखा था। तब अजीत ने कहा उनके पैसे लगभग डूबे हुए से ही थे क्योंकि वहां पर एक खंडहर था, लोग कहते थे कि वहां पर करीब 50 साल पहले एक प्रेमी जोड़ी की किसी ने हत्या कर दी थी और लोगों को लगता है कि वहां आज भी उनकी रुह भटकती है। तो वहां कोई भी मजदूर जाने को तैयार ना था जिससे की संतरे का बगीचा लगाया जा सके। तब माधव ने भी उसकी बातों पर विश्वास कर लिया क्योंकि अजीत ही उसके पिता के साथ वो ज़मीन खरीदने गया था। इस बात को पूरे 30 साल हो चुके थे।
तब मामला शांत हो गया लेकिन जैसे ही आर्थिक दिक्कतें बढ़ने लगी तब माधव को लगा कि किसी तरह अगर वो संतरे के बगीचे वाली ज़मीन बेच दी जाए तो कुछ समाधान मिल सकता है लेकिन फिर से अजीत ने माधव को अपनी बातों से विश्वास में ले लिया कि अब उस जगह के बारे में सोच कर कोई फ़ायदा नहीं है।
अजीत के तीनों बेटे महानगर में काफी मंहगे कॉलेज में पढ़ रहे थे, ऐसे में मधाव के मन में यह सवाल आया कि अजीत ने इसकी जुगाड़ कैसे लगा ली तब माधव ने कहा कि तीनों स्कॉलरशिप पर पढ़ रहे है, माधव के मन में बात थोड़ी खटकी ज़रुर पर उसने सोचा कि अपने भाई की बातों पर अविश्वास करना तो पाप समान है।
एक दिन माधव का कुछ ज़रुरी काम से अपने ससुराल जाना हुआ इसके लिए उसने गांव से बस और फिर एक शहर से दूसरे शहर के लिए ट्रेन पकड़ी तब देखा कि सामने वाली बर्थ पर कुछ लड़के बैठे हुए थे, तब उनसे माधव का परिचय हुआ माधव ने अपने खेत के आम निकालकर उन्हें खाने के लिए दिए, वो लड़के माधव से कुछ देर में घुल मिल गए तब पता चला कि वो तो अजीत के बच्चों के साथ पढ़ते है, तब उसने कहा क्या तुम भी स्कॉलरशिप पर पढ़ रहे हो तब उन्होंने जब दिया कि उस कॉलज में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है और फ़ीस भी काफी ज्यादा है, बातों ही बातों में उन लड़को ने अजीत के पिता की तारीफ़ कर डाली कहा कि “आप दोनों ने कितना त्याग किया है ख़ासकर आपने अपने पिता की शहर की महंगी ज़मीन बेचकर उनके तीनों बेटों की पढ़ाई में लगा दी वो तीनों लड़के अपने पिता और आपकी काफी तारीफ़ करते है” तब माधव को काफी ठगा हुआ सा महसूस हुआ और वो सोचने लगा कि क्या तारीफ़ ही काफी है? क्या वो खंडहर में प्रेमी जोड़ें की भटकती आत्मा और स्कॉलरशिप वाली बात झूठ है? मुझसे तो किसी ने सलाह मशविरा तक नहीं किया मेरा अपना कोई स्वार्थ नहीं लेकिन मुझे भी तो अपनी बेटियों की शादी के धन जुटाना है, लटके हुए मुंह के साथ माधव अपने ससुराल पहुंचा और अपने साले को सारी बात बता दी, तब उनके साले ने अजीत से कहा कि आप भी अपने भाई के प्रेम में अंधे हो बैठे कभी सच जानने की कोशिश तो की होती लेकिन अब पछताने से क्या होगा अगर आप लड़ाई झगड़ा करेंगे तो बचा खुचा सम्मान भी खो बैठेंगे। हो सकता है कि उसने धोखे से आपके पिता से ज़मीन अपने नाम करवा ली हो और कोर्ट कचहरी के चक्कर में आपका पैसा खर्च होगा वो अलग। तब माधव सोचने लगा सच ही तो है अब पछाताने से क्या फ़ायदा जब चिड़िया चुग गई खेत।
शिल्पा रोंघे
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