माँ का आँचल
एक छोटे से गाँव में लीला नाम की एक महिला अपने तीन बच्चों के साथ मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का पालन - पोषण कर रही थी। साथ ही अपने बच्चों को गाँव के स्कूल में पढ़ने को भेजती थी। उसके बच्चे पढ़ाई में बहुत होशियार थे। बच्चे बड़े हुए और अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करने लगे। बड़ा बेटा और बेटी शहर जाकर नौकरी की तलाश में पहुँचे। पढ़ाई के साथ - साथ उन्होंने छोटी - सी नौकरी कर ली और अपनी माँ का सहयोग करने लगे। छोटी बहन का सारा खर्चा उन्होंने उठा लिया। माँ यह देखकर बहुत प्रसन्न होती थी।
एक दिन बेटे का रिश्ता आया और लड़की वाले बेटे की शादी के लिए राजी हो गये। क्योंकि बेटा बहुत होशियार था। जब शादी की तारीख निश्चित हो गयी, तब माँ अन्दर ही अन्दर परेशान होने लगी, कि शादी के लिए धन कहाँ से लाऊँगी। कैसे मेरी बेटी की शादी होगी। उसने अपने करीबी रिश्तेदारों से बात की, लेकिन किसी ने भी उसका सहयोग नहीं किया। उसके पास अपना घर था उसने गिरवी रख दिया और शादी की तैयारी शुरू कर दी। सब कुछ अच्छी तरह से सम्पन्न हुआ। बहू घर में आ गयी। कुछ दिन बाद बेटा अपनी नौकरी पर चला गया। बहू घर में सारा काम करती और माँ की सेवा करती थी।
एक दिन बहू के माता - पिता घर में आये और बहू को कुछ सिखाने लगे। उनके जाने के बाद बहू का रवैया बदल गया। उसने बेटे से कहा कि- "मैं आपके साथ शहर में रहूँगी।" बेटे ने कहा- "ठीक है।" गांव वापस आकर मां से कहा- "मुझे मेरा हिस्सा दे दीजिए। मैं आपकी बहू के साथ शहर में ही रहूँगा।" माँ ने कहा- "बेटा! मैंने घर को गिरवी रखकर तेरी शादी की थी, क्योंकि मेरे पास धन नहीं था।" यह सुनकर बेटा नाराज हो गया। बेचारी माँ का बुरा हाल हो गया। जब यह बात बड़ी बेटी को मालूम पड़ी तो उसने कहा- "माँ! आप चिन्ता न करें। भाई को जितना पैसा चाहिए, मैं भिजवा देती हूँ।" बड़ी बेटी पढ़ाई के साथ अच्छी नौकरी भी करती थी। जितना भाई ने माँगा, उसने दे दिया। वह अपनी पत्नी को लेकर शहर चला गया। गरीब माँ का आँचल बहुत व्याकुल होने लगा। तब दोनों बेटी अपनी माँ के गले लग गयीं और बोलीं- "माँ! आप चिन्ता न करें। आज से आप हमारे साथ ही रहेंगी।" और फिर तीनों एक साथ रहने लगे। अब छोटी बेटी की भी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी।
एक दिन वह तीनों बाजार गयीं। सामान खरीदने समय माँ की बचपन की सहेली मिल गयी। दोनों में बातचीत हुई। दोनों एक - दूसरे को अपनी - अपनी आप बीती बताने लगीं। वह सहेली बहुत मालदार थी। उसके दो बेटे थे। सहेली ने दोनों बेटियों को अपने बेटों के लिए माँग लिया। समय पर वह शादी करवाकर दोनों बेटियों को बहू के रूप में अपने घर ले गयी। बाद में अपनी सहेली को भी अपने साथ रख लिया। कुछ समय बाद लीला का जो घर गिरवी रखा था, उसे छुड़वा दिया।
एक दिन बेटा जब गाँव पहुँचा तो गाँव के लोगों ने उसको बहुत बुरा - भला कहा। तब बेटे को अपने किये पर पछतावा हुआ और माँ की तलाश करने लगा। जब पता चला तो वह माँ के पास पहुँचा और माफी माँगी। माँ की ममता अलग ही होती है बेटे को गले से लगा लिया, लेकिन गरीब माँ का आँचल बहुत मजबूत होता है। अपने बेटे को माफ कर दिया और खुशी - खुशी दोनों बेटियों से कहा- "आप अपने परिवार के साथ अच्छे से के साथ रहो। मैं अपने घर जाना चाहती हूँ।" बेटियों ने 'हाँ' कह दिया। माँ अपने बेटे और बहू के साथ गाँव वापस आ गयी और वे सभी प्रसन्नतापूर्वक साथ - साथ रहने लगे।
संस्कार सन्देश :- इस कहानी से यही सीख मिलती है। कभी किसी की बातों में नहीं आना चाहिए, अन्यथा घर का सुख - चैन छिन जाता है।