*मनुष्य अपने जीवनकाल में सदैव उन्नति ही करना चाहता है परंतु सभी इसमें सफल नहीं हो पाते हैं | मनुष्य के किसी भी क्षेत्र में सफल या असफल होने में उसकी संगति महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है | इस संसार में भिन्न - भिन्न प्रकार के लोग रहते हैं इसमें से कुछ सद्प्रवृत्ति के होते हैं तो कुछ दुष्प्रवृत्ति के | जहाँ सद्प्रवृत्ति सदैव लोककल्याणक होती है वहीं दुष्प्रवृत्ति सदैव समाज के विपरीत विध्वंसक कार्यों में रत रहती है | मनुष्य की सफलता या असफलता में इन प्रवृत्तियों को नकारा नहीं जा सकता है | मनुष्य का जब दुर्भाग्य उदय होता है तो वह दुष्टों की संगति में आ जाता है | यद्यपि वह प्रारम्भ में तो ऐसे लोगों की संगति नहीं करना चाहता परंतु संगति का प्रभाव हो जाने पर वह इनका साथ भी नहीं छोड़ पाता जिसके फलस्वरूप उसके सारे सपने ध्वस्त हो जाते हैं और वह स्वयं तो दुखी रहता ही है साथ में दुष्टों की संगति के प्रभाव से अपने नवीन क्रियाकलापों से परिवार एवं समाज को भी दुखी बनाये रखता है | कुसंगति का प्रभाव यह होता है कि समाज उसे स्थान - स्थान पर असम्मानित करने लगता है | चाहे जितना कुलीन हो , धनाढ्य हो परंतु यदि दुष्प्रवृत्ति उसका स्वभाव बन जाती है तो वह सम्मान कभी नहीं प्राप्त कर सकता | संगति के प्रभाव को कदापि नकारा नहीं जा सकता है | दुष्टों की संगति तभी होती है जब मनुष्य किसी लोभ के वशीभूत होकर अपना कार्य सम्पादित कराने हेतु दुष्टों के पास जाता है |
यह संगति का ही प्रभाव होता है कि अपना कार्य सम्पन्न हो जाने के बाद भी दुष्टों की संगति नहीं छूटती और व्यक्ति का जीवन नारकीय बन जाता है | इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को किसी की भी संगति करने के पहले उसके गुण - दोषों का आंकलन अवश्य कर लेना चाहिए |* *आज भौतिकता की अंधी दौड़ में जिस प्रकार मनुष्य अपने संस्कारों से दूर होता चला जा रहा है उसका परिणाम सबके सामने है | आज के परिवेश में जिस प्रकार नित्य अमानवीय कृत्यों के समाचार देखने एवं सुनने को मिल रहे हैं उसका कारण सिर्फ आज के युवाओं की संगति एवं संस्कारों का पतन ही मुख्य है | आज मनुष्य पतित होता जा रहा है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि मनुष्य के पतन के मुख्यत: दो कारण होते हैं प्रथम तो यह कि मनुष्य स्वयं को नहीं समझ पाता और अपने आचरण से गिर जाता है ! और दूसरा दुष्टों की संगति | मनुष्य को सदैव कुसंगति से बचते रहने का प्रयास करते रहना चाहिए | जिस प्रकार मनुष्य एकाकीपन में गलत विचारों में खो जाता है और उसकी मानसिकता वैसी ही बन जाती है उसी प्रकार कुसंगति सदैव गलत कार्यों की ओर प्रेरित करती रहती है |
किसी ने बहुत सुंदर लाईन लिखी है :-- "आगि जरौं जल बूड़ि मरौ गिरि जाइ गिरौं कछु भय मत आनौ ! सुंदर और भले सब ही पर दुर्जन संग भलो जनि जानौ !!" अर्थात :- जल में डूबकर मरना , आग में जलना , पर्वतों से गिर जाने आदि में भी उतनी बानि नहीं है जितनी हानि दुष्टों की संगति से हो सकती है | कुसंग का क्या प्रभाव होता है इसका ज्वलंत उदाहरण है अयोध्या , जहाँ मन्थरा की कुसंगति के प्रभाव में आकर कैकेयी अपने प्राणप्रिय श्रीराम के लिए चौदह वर्षों का वनवास मांग लेती है | कुसंगति से बचने के लिए सद्गुरु एवं सजिजनों की संगति ही ब्रह्मास्त्र है | सज्जनों की संगति मनुष्य को कुसंग से बचाकर सद्मार्ग के अनन्त आकाश में भेज देती है |* *मनुष्य को सदैव सद्गुणी की संगति करनी चाहिए क्योंकि जिसके पास जो होगा वहीं आपको मिलेगा |*