शिवराज सरकार के नरोत्तम मिश्रा को पेड न्यूज़ मामले में हाईकोर्ट ने राहत नहीं दी है। आज मिश्रा जी राष्ट्रपति चुनाव में मत का प्रयोग नहीं कर पाएंगे। सच कहूं तो निजी रूप से मैं बहुत खुश हूँ क्योकि धार के प्रभारी मंत्री के रूप में उनके अहंकार और अक्खड़पन से पत्रकार लॉबी परेशान रहती थी। बंदा टेढ़ा सवाल आते ही रिपोर्टर को गरियाने लगता था। हालांकि पेड न्यूज़ के मामले में नाहक ही फंस गए मंत्री जी। आज के दौर में अख़बार ज्यादातर पेड न्यूज़ ही छाप रहे हैं। अब तो इतना अनुभव हो चुका है कि खबर की चार लाइन पढ़ते से ही समझ आ जाता है कि इसका पैसा खाया गया है कि नहीं। सबसे ज्यादा पैसा अख़बारों के साथ आने वाले 'इंग्लिशनुमा सप्लीमेंट' में चलता है। इसके बाद ब्यूरो स्तर पर लोगों ने पैसा खा खाकर दस-दस मकान खड़े कर लिए। फ़ोटो प्रदर्शनी, संगीत कार्यक्रम, फैशन शो, प्रेस कॉन्फ्रेंस की खबर छपवाने के लिए ख़ासा धन खर्च करना पड़ता है। इसी तरह क्राइम और राजनीति क ख़बरों के लिए पैसा लिया जा रहा है। यदि आप पर्यावरण और समाज सेवा के क्षेत्र में बेहतर कर रहे हैं तो आपको अपना काम दुनिया के सामने लाने के लिए जेब ढीली करनी पड़ेगी। गणपति उत्सव और नवरात्री तक की खबरे पेड होती है, यहाँ तक कि एक अदना सी विज्ञप्ति के लिए भी पैसा देना पड़ता है।
नरोत्तम मिश्रा जी बात बस इतनी है 'जब तक चोर पकड़ा न जाए, वो आर्टिस्ट ही रहता है'।
मूल लेखक : विपुल रेगे