“मुक्तक”
याद आती पाठशाला पटरी को पढ़ते कर गई।
चाक जब होते मधुर थे डगरी को हँसते कर गई।
आज जाने क्या हुआ है खुन्नस बहुत है पीठ पर-
पाठ कोई और पढ़ता नगरी को चिढ़ते कर गई॥-१
रे मदरसा चल बता कैसी पढ़ाई हो रही।
नाम है तेरा बहुत पर धन उगाई हो रही।
ढ़ूढ़ता मग मगहरी सु दोहा कहाँ कबीर का-
सूर अरु रसखान मन क्योंकर धुनाई हो रही॥-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी