अपनी ज़िन्दगी के रावणअब मुझे जलाने हैंमान मर्यादा लोक लाजके बंधन अब मुझेभुलाने हैंमैं प्यारी और दुलारी थीजब तक अपनीउपेक्षा सेहती रहीतुम्हारे बेटा बेटी के दुर्भाव मेंमैं अपने अधिकार छोड़ती रहीतुम्हारी इस मानसिक सोचसे मुखौटे अब हटाने हैंअपनी ज़िन्दगी के रावणअब मुझे जलाने हैंतु
किस्सा -1 मैं बाज़ार से कुछ सामान खरीद कर घर की ओर जा रही थी. रस्ते में एक बुजुर्ग आदमी मुझे हल्का सा टकराता हुआ तेजी से निकला, मुझे लगा शायद गलती से हुआ. थोड़ी दूर जाने पर वो आदमी आगे सड़क किनारे खड़ा हुआ था.उस बुजुर्ग आदमी ने मुझे देखकर एक अजीब से हंसी मेरी तरफ फेंकी. उस समय मुझे इतना गुस्सा आया लगा
आज के दौर में भले ही स्त्रियों ने अपनी काबिलियत से हर क्षेत्र में परचम लहराया हो, लेकिन फिर भी देश का माहौल उनके लिए आज भी सुरक्षित नहीं है। आज के समय में भी जब एक लड़की घर से निकलती है तो उसके वापिस लौट आने तक उसके माता-पिता को चिंता ही लगी रहती है। इतना ही नहीं, बहुत से क्षेत्र में माता-पिता अपनी ल
तितली के पंखों के जैसे रंग बिरंगे सपने हो नहीं किसी गैर के रंग बस मेरे अपने होमेरे सपनो की डोर बस मेरे हाथ होमन चाहे जहाँ उड़ चलू इस पार या उस पार कोमेरी सोच की लहरों का आकाश अपार होकब, कहाँ, किस ओर को जाना है ऐसा न कोई ख्याल होबाहों
यूपीएससी परीक्षा में उसे 85 वें रैंक (पूरे भारतमे)के साथ, “संजुक्ता पाराशर” एक आरामदायक डेस्क काम के लिए चुनी जा सकती थीं। जवाहरलाल विश्वविद्यालय से Ph.Dकरने के बाद औरदो साल बेटे के होने के बावजूद उन्होनें एक कठिन रास्ता चुना जैस्पर चलते हुए वो हर रोज आतंक से लड़ रही
आदर्श नारी के गुण बखान करती कविता - ******************************************** @@@@@@@@ सुलखण नार @@@@@@@@ ************************************************************ घर -मन्दिर की जो हो देवी ,पूजे जिसको उसका भरतार | जीवन में ही स्वर्ग मिल जाए ,पाकर पत्नी सुलखण नार || जान हो जो अपने बच्चों की ,पत
नारी , तुम किसकी बराबरी करना चाह रही हो ? नर की , जिसे तुम जन्म देती हो !कुछ बड़ा और अलग करो , देवी ।
नारी "-ईश्वर की सर्वश्रेष्ठतम कृति ================== ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग, पग-तल में, पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में।' वास्तव में नारी इन पक्तियों को चारितार्थ करती है।नारी श्रद्धा,प्रेम,समर्पण और सौंदर्य का पर्याय है। नारी अमृत तुल्य है क्योंकि वह जीवन देती है,
सूर्य में कितनी ऊर्जा है ये उसे नहीं पता ,चन्द्रमा में कितनी शीतलता है ये उसे नहीं पता ,फूल अपनी सुगंध से अवगत नहीं है ,हीरा अपने मूल्य से अंजान है
ईश्वर ने पावन प्रतिमा ऊपर से उतारी है .
@@@@@@@@- नारी- @@@@@@@@इस दुनिया की शोभा है , इस दुनिया की रौनक है |खुश रखें सदा इसको ,रचा कुदरत ने है जिसको ||जिसकी दीवानी सृष्टि सारी,वो नारी है कहलाती |बुझे -बुझे मर्दों का मन ,नारी ही तो बहलाती ||घर में पायल खनकाती ,मन का मोर नचवाती |पतली कमर लचकाती ,प्यार में आकर इठलाती ||इस दुनिया की शोभा है
आज पुरुष और नारी समानता का युग होने के बावज़ूद, अभी भी नारी अत्याचार की इतनी घिनौनी कुप्रथाएं मौजूद है कि जिन्हें जानकर आप दाँतों तले उंगली दबा देंगे। नारी अत्याचार की क्रृरतम कुप्रथाएं | आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल
सामान्यतः मनुष्यों को जल, भाफ, अग्नि, विद्युत, वायु, गैस आदि की शक्ति का तो अनुभव हुआ करता है, परन्तु ‘शब्द’ में भी कोई ऐसी शक्ति होती है, जो स्थूल पदार्थों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाल सके, इस पर उनको शीघ्र विश्वास नहीं होता। वे यह तो मान सकते हैं कि मधुर शब्दों से श्रोता का चित्त प्रसन्न होता है कठोर श
वैदिक काल में नारी की स्थिति अत्यन्त उच्च थी। उस काल में यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता की कहावत चरितार्थ होती थी। भारतीयों के सभी आदर्श रूप नारी में पाए जाते थे, जैसे सरस्वती(विद्या का आदर्श), लक्ष्मी(धन का आदर्श), दुर्गा(शक्ति का आदर्श), रति(सौन्दर्य का आदर्श) एवं गंगा(पवित्राता का आदर
नारी तुम मुक्त हो।नारी तुम मुक्त हो। बिखरा हुआ अस्तित्व हो। सिमटा हुआ व्यक्तित्व हो। सर्वथा अव्यक्त हो। नारी तुम मुक्त हो।शब्द कोषों से छलित देवी होकर भी दलित। शेष से संयुक्त हो। नारी तुम मुक्त हो।ईश्वर का संकल्प हो।प्रेम का तुम विकल्प हो। त्याग से संतृप्त हो। नारी तुम मुक्त हो
भावुकता स्नेहिल ह्रदय ,दुर्बलता न नारी की ,संतोषी मन सहनशीलता, हिम्मत है हर नारी की ........................................................................भावुक मन से गृहस्थ धर्म की , नींव वही जमाये है ,पत्थर दिल को कोमल करना ,नहीं है मुश्किल नारी की.................................................
महिला सशक्तीकरण पर सर्वाधिक चर्चा नब्बे के दशक से उभरे भूमंडलीकरण के दौरान प्रारंभ हुई। 'विमेन फ्रीलिव' जैसे अप्रासंगिक आन्दोलन ने 'सशक्तीकरण' का जो रूप ग्रहण किया है वह उचित एवं प्रासंगिक दोनों ही है। महिला सशक्तीकरण के सन्दर्भ में जब कानपुर का प्रसंग आता है तो कुछ नाम सहज ही याद आने लगते हैं। इन्ह
श्रीश्री रविशंकर के रवि से श्रीश्री बनने तक के सफर के बारे में एमएन चक्रवर्ती आगे बताते हैं, उन दिनों में वह बेहद आकर्षक थे। एक ऐसा युवक जिसके गाल आपको उसके करीब ले जाते और आपका दिल करता कि आप उसके गालों को पिंच करें। लंबे उड़ते बाल और दाढ़ी के बावजूद आप जब उसे छूते तो आपके अंदर नारी को छूने वाला फी
सादर शुभ प्रभात मित्रों,आज विश्व महिला दिवस पर मंच की सभी महिला मित्रों को सादर प्रणाम, महिला शक्ति को सादर नमन। मुझे लगता है कि आज हमें अपने अंतरमन से यह जरूर पुछना चाहिए कि क्या हमारे अबतक के जीवन का एक पल भी बिना किसी महिला के साथ के व्यतित हुआ है। अगर उत्तर नहीं है तो पीछे मुड़कर देखें, जन्म दिया