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नारीवाद

17 सितम्बर 2022

24 बार देखा गया 24
17/9/2022

प्रिय डायरी, 
                 आज का शीर्षक है नारीवाद,

      नारीवाद अवधारणा का आरंभ इस विश्वास के साथ होता है कि स्त्रियां पुरुषों की तुलना में अलाभ और हीनता की स्थिति में हैं। नारीवादी विचारधारा मुख्य रूप से स्त्री-पुरुष भेदभाव से जुड़ी है तथा यह स्त्रियों की भूमिका और अधिकारों से संबंधित है। यह अवधारणा स्त्रियों की पराधीनता और उनके प्रति होने वाले अन्याय पर ध्यान केंद्रित करते हुए इनके प्रतिकार के उपायों पर विचार करती है। नारीवाद स्त्री-पुरुष भेदभाव की पड़ताल के लिए मुख्य रूप से  ‛जेंडर’ को आधार बनाता है। नारीवादियों का मानना है कि लिंग एक ‛जीव वैज्ञानिक तथ्य’ है तथा जेंडर एक ‛समाजवैज्ञानिक तथ्य’ । नारीवादियों का मानना है कि प्रकृति ने स्त्री और पुरुष की शारीरिक बनावट में जो अंतर स्थापित किया है उसी को सामाजिक स्थिति का आधार बना लिया गया जो कि तर्कसंगत नहीं है।
       प्राचीन काल से ही स्त्रियों को सामाजिक जीवन में उपयुक्त मान्यता नहीं दी गई और उन्हें हीन स्थिति में रखा गया। नारीवादी विचारक जैविक-निर्धारणवाद(Biological determinism) के विचार को खारिज करते हुए बताते हैं कि पुरुष और स्त्री की भिन्न छवि उनके जीव वैज्ञानिक अंतर पर आधारित नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति की देन है। यह अधीनता सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों, विचारधाराओं और संस्थाओं की उपज है जो महिलाओं की भौतिक और विचारधारात्मक अधीनता यानी जेंडर के प्रभुत्व को सुनिश्चित करती है। ये मान्यताएं सामाजिक जीवन में स्त्री के संपूर्ण जीवन पर पुरुष के नियंत्रण को बढ़ावा देती हैं जिससे पितृसत्ता स्थापित होती है और यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था ही स्त्रियों के शोषण का कारण है। इस प्रकार से नारीवादियों का मानना है कि स्त्रियों की हीन स्थिति का कारण कृत्रिम है और यह समाज द्वारा निर्मित है जिसे चुनौती दी जानी चाहिए।
धन्यवाद
अनुपमा वर्मा ✍️✍️
Pragya pandey

Pragya pandey

Nice ma'am 👌👌👌

17 सितम्बर 2022

anupama verma

anupama verma

17 सितम्बर 2022

Thank you 💐

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

बढ़िया लिखा आपने👌

17 सितम्बर 2022

anupama verma

anupama verma

17 सितम्बर 2022

Thank you 🙏🙏

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