अक्सर वही गीत गुनगुनाती हो क्यों ?
पुरानी कहानियां सुनाती हो क्यों?
ढेरों सुपारी रोज खा जाती हो क्यों ?
मीठी नहीं हैं ,बताती हो क्यों?
खाने से मुझे रोक जाती हो क्यों ?
दादी मां तुम ऐसी क्यों हो ?
बार -बार पल्लू से आंखें पोंछती हो क्यों ?
खाली बटुआ कमर में खोंसती हो क्यों?
नीम की ही दातून रोज करती हो क्यों ?
बुखार में भी खुद तुम खटती हो क्यों?
मुझे फिर जिद कर लिटाती हो क्यों ?
दादी मां तुम ऐसी क्यों हो ?
चलो आज हम -तुम कहीं घूम आयें,
बाहर निकल कर उधम मचायें।
तुम्हारा खोया बचपन वापस ले लायें,
ये गंभीर लबादा दूर कहीं फेंक आयें।
यूं आंखें तरेर कर डराती हो क्यों?
दादी मां तुम ऐसी क्यों हो?
©कमल कांत