कभी-कभी मिल जाते यूं ही,अपने चलते -चलते।
कभी-कभी सपने जगते हैं,आंखें मलते-मलते।।
कभी -कभी सोचा करता हूं,पकड़ूं राह नवेली।
कभी-कभी जी में आता है, कौन सुनेगा मेरी?
कभी-कभी आसान बहुत है, सोचा समझा अपना।
कभी-कभी धोका देता है,दिन में देखा सपना।।
कभी-कभी दीपक बुझ जाता,यूं ही जलते -जलते।
कभी-कभी सपने जगते हैं, आंखें मलते-मलते।।
कभी-कभी नयनों से होती, बारिश खारी -खारी।
कभी-कभी गिर कर उठना भी,हो जाता है भारी।।
कभी नहीं हिम्मत को हारो,मंत्र यही है जपना।
फलीभूत भी हो सकता है, दिन में देखा सपना।।
वक्त लगा लेतें हैं यारों, द्रुम भी फलते-फलते।
कभी-कभी सपने जगते हैं, आंखें मलते-मलते।।
©कमल कांत