उस को देखा तो ये, ख़याल आया।
सारी ज़िन्दगी यूं ही, बिता आया॥
कभी धूप से कभी, छांव से छुप के।
जब भी मिला ग़म, वह घर बुला लाया॥
मौसम बदला हवा बदली शहर की।
न ख़ुद बदला न चोला ही रंगवाया॥
सुर थे न ताल थी, जिसके गाने में।
जिंदगी भर वही गीत गुनगुनाया॥
सूखी लकड़ी बन, टूट गया है अब।
हरी डाल-सा क्यों न वो लचक पाया।।