रखवाला कर्तव्य भूल कर,खुली आंख सोता है।
कभी-कभी सोचा करता हूं,ऐसा क्यों होता है ?
कभी-कभी बगिया का माली,उपवन उजाड़ देता ।
कभी-कभी मां का दुलार भी, बच्चे बिगाड़ देता।।
कभी-कभी ज्यादा हरकत से,राग दोष हो जाता।
कभी-कभी दुष्टों को भी, पाप-बोध हो जाता।।
कभी-कभी कोई यह कहता,यह जग झूठा सपना।
कभी-कभी कोई अनजाना,लगने लगता अपना।।
हमने देखा तुमने देखा, दुनिया बदल रही थी।
नये -नये आयाम खोजती,कैसी संवर रही थी!
फिर भी अमन -चैन पाने को, सब कोई यूं तरसें।
जैसे काले- काले मेघा , कहीं और जा बरसें।।
लालच और दंभ के आगे, जग विवेक खोता है।
कभी-कभी सोचा करता हूं,ऐसा क्यों होता है?