व्यंग्य विनोद की चाशनी में डुबा कर परोसी गई पुरानी कहानी #
यह महर्षि आयोदधौम्य का आश्रम है. पूरे आश्रम में महर्षि की मंत्र वाणी गूंजती रहती है. गुरुजी प्रात: 4 बजे उठकर गंगा स्नान करके लौटते,तब तक शिष्यगण भी नहा-धोकर बगीचे से फूल तोड़ कर गुरु को प्रणाम कर उपस्थित हो जाते.आश्रम ,पवित्र यज्ञ धूम्र से सुगंधित रहता.आश्रम के बगीचे के सामने की झोपड़ियों में अनेक शिष्य रहते थे.गुरु के शिष्यों में तीन शिष्य बहुत प्रसिद्ध हुए. वे परम गुरु भक्त थे.उनमें बालक आरुणि भी एक था.
एक दिन की बात है -सायंकाल अचानक बादलोंं की गर्जना सुनाई देने लगी...घड़घड़़...धड़धड़ .बादलों की गर्जन सुन मोर टहूके- पि√√ को√√क ! पिको√√का !! ताल-तलैया के किनारे उछलते-कूदते मेंढक टर्राए...टर्र...टर्र...√√ ! गुरुजी ने आकाश की ओर देखा-"अरे ! वर्षा का मौसम तो बीत गया.अब अचानक उमड़-घुमड़ कर बादल क्यों छा रहे हैं? लगता है वर्षा होगी."
तभी मौसम वैज्ञानिकों की भी तन्द्रा टूटी और आनन-फानन में उन्होंने विज्ञप्ति जारी की - "अब अरब सागर में निम्न दबाव का क्षेत्र बन रहा है जिसके प्रभाव में घनघोर वर्षा के आसार हैं."सभी टी.वी़ न्यूज़ चैनलों ने अपने-अपने पुराने वीडियो झाड़-पोंछ कर प्रसारण हेतु तैयार कर लिए जिससे जल -भराव और बाढ़ की ख़बरें ब्रेकिंग न्यूज़ के साथ सबसे पहले दिखाने का श्रेय लूटा जा सके. तभी बड़ी-बड़ी बूंदें बरसने लगीं. देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा शुरू हो गयी.
कुछ दूर गुरुजी के खेत थे. गुरुजी ने सोचा कि कहीं अपने धान के खेत की मेड़ अधिक पानी भरने से टूट न जाये.इस तरह तो खेतों में से सब पानी बह जाएगा. मिट्टी कट जाएगी. उन्होंने आवाज़ दी-" आरुणि ! बेटा आरुणि √√ !"
----"उपस्थित हुआ गुरुदेव √√"!
----"बेटा आरुणि ! वर्षा हो रही है.तुम खेत पर जाओ और देखो, कहीं मेड़ तोड़ कर खेत का पानी निकल न जाए."
----"जो आज्ञा गुरुदेव !"
गुरु का आदेश पा कर आरुणि चल पड़ा .झमाझम पानी बरस रहा था.बादल गरज रहे थे...घड़ड़ड़√√√ ! मोर मस्ती में भर वर्षा के स्वागत में टुहुक रहे थे--पि...के√√√...क !पि...√√√को√√√का !
आरुणि भीगता हुआ भी दौड़ा जा रहा था. इधर टी.वी़ न्यूज़ चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज़ की बाढ़ शुरू हो रही थी ,उधर आरुणि खुशी से फूला नहीं समा रहा था कि गुरुजी ने दूसरे शिष्यों की उपेक्षा कर उसे महत्वपूर्ण कार्य सौंपा था.उसके कानों में वर्षा की रिमझिम के स्थान पर गुरुजी की बताई शिक्षा गूंजने लगी -
गुरुर्बह्मा गुरुर्विष्णु:
गुरुर्देवो महेश्वर :
आरुणि पर अब तक यह यह तथ्य प्रकट नहीं हुआ था कि उसके और ऋषि कन्या के प्रेम प्रसंगों की चर्चा महर्षि के कानों तक पहुँचायी जा चुकी है.उस नादान बालक को पता नहीं था कि गुरुजी की इस अनुकम्पा के पीछे कोई और उद्देश्य भी निहित हो सकता है.
खेत पर पहुँच कर आरुणि ने पाया कि मेड़ एक स्थान पर टूट गयी है तथा वहाँ से बड़े जोर से पानी की धारा बहने लगी है.उसने टूटी मेड़ पर मिट्टी जमाने का प्रयत्न किया किन्तु पानी का वेग बार -बार मिट्टी को बहा ले जाता.आरुणि ने सोचा-हा़य! यह तो सारी मेहनत ही बेकार हुई जाती है,पानी तो ठहरता ही नहीं.क्या करूँ? गुरूजी के सामने अपमानित होना पड़ेगा.उसके सम्मुख ऋषि कन्या का रुआंसा चेहरा बार-बार सामने आने लगा . प्रेमिका को पाने के लिए पुरुष क्या-क्या नहीं कर जाता ? कोई साँप को रस्सी समझ उसके सहारे
प्रेमिका को पाने के लिए अट्टालिका पर जा चढ़ा.किसी ने पूरा पहाड़ खोद कर नहर निकाल डाली.कोई भीड़ के पत्थरों की मार भी सह गया.आरुणि ने खुद ही टूटी मेड़ के स्थान पर लेट जाने की सोची.हाँ,यह ठीक रहेगा.और आरुणि सचमुच टूटी मेड़ के स्थान,पर सो गया.पानी का बहाव थम गया.रात धीरे-धीरे जवान होने लगी.चारों ओर अंधकार ही अंधकार.किन्तु वर्षा थमने का नाम नहीं ले रही थी.
प्रकृति का यह प्रकोप शासकीय अधिकारियों के एक वर्ग के लिए सचमुच वरदान बन कर आया था.अब तक सूखा- राहत की बंदर -बांट पचायी जा चुकी थी.अति वृष्टि और बाढ़ की संभावनाओं ने उनके लिए एक और स्वर्णिम द्वार खोल दिया था.इधर बादलों की गर्जना बढ़ती ही जाती थी.गीदड़ों की हआ- हुआ,झमाझम बरसता पानी,कल कल बहती धाराएं और सर्द हवाएं आरुणि की तपस्या को भंग करने का भरपूर प्रयास करती प्रतीत होती थीं.आरुणि का शरीर भी सर्दी से अकड़ने लगा किन्तु उसे तो एक ही धुन...गुरुजी की आज्ञा का पालन.अर्द्धमूर्छित अवस्था में आरुणि ऋषि कन्या के साथ फिल्मी अंताक्षरी खेल रहा था ---
ऋषिकन्या : न तूफां से खेलो,
न साहिल से खेलो
मेरे पास आओ
मेरे दिल से खेलो
आरुणि : भूल गया सब कुछ
याद नहीं अब कुछ
रात गुजरती रही.बादल उमड़ते,घुमड़ते,गरजते ,निर्द्वन्द्व आकाश में तांडव नृत्य करते रहे.गीदड़ चीखते रहे-हूआ√√हुआ√√!!.मेंढक टर्राते रहे-टर्र ,टर्र.एक घंटा,..दो घंटा...तीन घंटा....आरुणि रात भर खेत में सोता रहा.सर्दी से शरीर सुन्न पड़ गया.गुरुदेव के खेत से पानी बहने न पाए,इस विचार से वह न तो तनिक भी हिला और न ही उसने करवट बदली.शरीर में भयंकर पीड़ा होते रहने पर भी आरुणि गुरुजी का स्मरण करते हुए
वहीं पड़ा रहा.
मुर्गे ने सुबह होने की सूचना दी...कुकड़ूं कूं √√√! चिड़ियाँ चहकने लगीं.गुरुजी नहा-धोकर लौटे.सभी शिष्यगण सदैव की तरह गुरुजी को प्रणाम करने पहुँचे.
----गुरुदेव प्रणाम !
----प्रसन्न रहो उपमन्यु!
---गुरुदेव प्रणाम !
----प्रसन्न रहो पुत्र वेद !
गुरु ने देखा कि आज आरुणि प्रणाम करने नहीं आया .गुरु सशंकित हो उठे,कहीं वह शिष्य ऋषि कन्या के साथ रुक्मणि-हरण का वृतान्त तो नहीं दोहरा गया.उन्होंने अन्य शिष्यों से पूछा -"आज आरुणि नही दिख रहा है."एक शिष्य ने याद दिलाया-"गुरुदेव ! कल संध्या समय खेत की मेड़ बांधने गया था,तब से अब तक नहीं लौटा."
---"अरे हाँ, याद आ गया. किन्तु वह लौटा क्यों नही? कहाँ रह गया ?चलो पता लगायें!"
महर्षि अपने शिष्यों की टोली के साथ आरुणि को ढूंढ़ने निकल पड़े. चलते-चलते खेत की मेड़ की तरफ जा पहुँचे़
----"बेटा आरुणि √√!कहाँ हो ?"
किन्तु आरुणि का शरीर सर्दी से इतना अकड़ गया था कि न तो वह बोल सकता था, न हिल-डुल सकता था.
----" वह रहा !अरे, मेड़ के सहारे पानी के बहाव में मूर्छित पड़ा है."एक शिष्य ने बताया.सभी वहाँ पहुँचे,उन्होंने मूर्छित आरुणि को उठाया,उसके हाथ-पाँवों की मालिश की.थोड़ी देर में उसे होश आ गया.गुरुजी ने सब बातें सुन कर,समझ कर मौके की नज़ाकत देखते हुए उसे हृदय से लगा लिया और आशीर्वाद दिया-"बेटा आरुणि ! तुम सच्चे गुरुभक्त हो,तुम्हें सब विद्यायें अपने आप ही आ जाएंगी".
गुरुवर ने आशीर्वाद सभी शिष्यों के सम्मुख दिया था,अतएव उसको फलीभूत कराने का उत्तरदायित्व भी उन्हीं का था.कहना न होगा ,परीक्षा के सभी पेपर आरुणि को ज्ञात करा दिए गये. गुरुकुल के दीक्षान्त समारोह में चक्रवर्ती सम्राट के कर-कमलों से स्वर्ण पदक प्राप्त करने का सुअवसर भी आखिर उसे ही मिलना था.
पुछल्ला :
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टी.वी.न्यूज़ चैनलों को किसी खबरी ने कहा है कि गुरुकुल से "बिहार टॉपर " स्कैंडल की
बू आ रही है.मैं अपना टी.वी. सेट खोल कर बैठा हूँ,उस क्षण की प्रतीक्षा में हूँ जब "नेशन वांट्स टु नो" का ब्रम्ह उदघोष प्रारंभ होगा.