शहर से गुजरती थी रेल की पटरी,
गाड़ी का छुक-छुकाना याद आया |
कितने अच्छे थे दोस्त बचपन के,
उनसे लड़ना-लड़ाना याद आया |
मौज मस्ती वो अपनी आवारगी,
घर में बहाने बनाना याद आया |
चोरी से सुनली जो उनकी बातें,
किसी का नजरें चुराना याद आया।
पढ़े जब इश्क और मोहब्बत के किस्से,
दिल का धुक-धुकाना याद आया।
लरजते होंठों का वो पहला बोसा,
दुपट्टे से मुंह छुपाना याद आया।
आज कुछ अपना पुराना याद आया,
एक गुज़रा ज़माना याद आया।