1.दंगा:
जलते टायर सड़क पर, धुंआ रहा था फैल।
क्या पुलिस क्या दंगाई, इक कालिख इक मैल।।
2.आंदोलन:
अपनी मांगों पर अड़ो,सही समय को देख।
कूद पड़ो मैदान में,ना है लछिमन रेख।।
3.घोटालेबाज:
घोटालों के दोष पर,कभी न हिम्मत हार।
नीचे से ऊपर तलक, जुड़े सभी के तार।।
4.एनकाउंटर
पब्लिक सब चिल्ला रही,पीट पीट कर ढोल।
कांटे से कांटा गया, लेकिन इसमें पोल।।
लेकिन इसमें पोल, बात को समझो काकी।
छुटे सांड़ सी हुई, पुलिस की वर्दी खाकी।।
कहें 'कमल ' कविराय,सभी माथा ठोकेंगे।
खुद पर होगा ज़ुल्म ,और दुःख को भोगेंगे।।