गिरिधारी नटवर नागर, मोर मुकुट मोहे भाया।
सूरत मैं तेरी निरखूं , कैसी रचता है माया।।
हरि तू पीतांबर धारी,उर में झूले वन माला।।
अधरों पर वंशी सोहे ,मोहित हैं गोपी ग्वाला।।
माखन, दधि लूट मचा कर,फोड़ी मटकी संग राधा।
कुछ खाया औ' कुछ बांटा,मुख पर मलता तू आधा।।
कन्दुक क्रीड़ा में रत यूं , यमुना तट पर बनवारी।
कौतुक हो कर सब निरखें, गोकुल के नर औ'नारी।।