चपरासी मुझको लगवा दो...
हे प्रभु ! तुम दया के सागर।
किसी तरह भर दो ये गागर।।
चपरासी मुझको लगवा दो।
नैया मेरी पार करा दो ।।
मैं भव सागर से तर जाऊं।
गीत तिहारे हर पल गाऊं।।
नहीं बनूंगा मंत्री संत्री ।
दिखा चुका हूँ अपनी जंत्री।।
सो कर उठता मैं आठ बजे।
करता रहता दिन रात मजे।।
चलती मेरी ही मन मर्जी।
फिर भी भेजी है यहअर्जी।।
अफसर हों ऊँघें पड़े पड़े।
पैसे उगतेे हों खड़े खड़े ।।
फाइलें जहाँ धक्के खायें।
आँखों की नमी सुखा जायें।।
ऐसे दफ्तर हैं गली गली।
पर वहाँ हमारी नहीं चली।।
अब शरण तिहारी आया हूँ।
कुछ फूल पत्र भी लाया हूँ।।
मेरा टांका भिड़वा देना ।
चपरासी बस लगवा देना।।
मैं तेरे ही गुण गाऊंगा।
जब ऐसा दफ्तर पाऊंगा।।
तेरा दरबार सजाऊंगा।
डंका चहुं ओर बजाऊंगा।।
यह शंखनाद करवाया है।
चपरासी का पद भाया है।।