शिद्दत ए महफिल में ना मुस्कुरा सके जाने क्यों लगने लगा अब मुझे डर चेहरे पर मायूसी आंखों में आंसू लिए फिरते हैं शायद यह तेरी ना मौजूदगी का ही है असर न संगीने महफिल और मजाक होती अब जब जब हो जाती थी
किसने कहूँक्या कहूँ ,या लिखूँ ख्वाब मेरे न समझ कोई अफसाना सख्त हो गया हूँ मैं न कर शिकायत ,मेरा मकसद नहीं किसी को डराना मुझे चिंता है तेरे माँ बाप की जो लगता हैं सबके लिये जग जाहिर बुरा लगे
जो जी उठे तो फिर दफनाने को है सब तैयार तुझसे ज्यादा तेरी दौलत से होने लगा अब उनको प्यार सूखने लगे आसूं अब उन आंखों में दिखती है पैसों की चमक न जाने क्यों चिता की राख पर गिरते पानी से भी लोग
रिश्ते नाते दोस्ती यारी जग जनता दरबार जिससे जब जब जो मिला उन सबका आभार माफ करे वो मुझे जिनका कुछ बचा हो शेष सात दिन का मेहमान हूँ और कह दो यदि कुछ बात विशेष हूँ राख का ढेर सही पर जिन्दा हैं ज
पल भर में मिट जाये हस्ती फिर कैसा अभिमान जान बूझकर करता गलती और बने अनजान कर्म फल की न चिंता करता कैसे कैसे करे जतन तिल तिल कर जोड़े धन को साथ न जाये कफन शान ए शौकत रिश्ते नाते भला किसको दिखाए जि
राम राम दशरत भजे रही न राम की आस पुत्र मोह में पिता तरसे कौन बुझाये प्यास मृत्यु ऐसी बाबरी जिसकी ना ढीली पाश तपोवन की अग्नि है वह पेड़ बसे न घास घायल हृदय को कौन समझाए मौन खड़ी यह भीड़ ब
बच्चों के सपने टूटे, पिता की छुटी आस, ममता प्रकृति को देती दुहाई, लौटा दे बेटे को काश, झुठलाती मौत का हरपल, कैसे माने किसी का कहना कौन पूछेगा माँ का हाल, कौन मनाये तेरी बहना, अक्सर पुकार कानों में
जीते जी जिन्हें अबतक सुहाया , उसकी मृत्यु पर सुनाये , देखो शोक संदेश निस्वार्थ सेवा और क्या क्या कहे , कैसे झूठे दे उपदेश स्वार्य में घिरा ये संसार यहाँ किसी का न कोई ठौर सबकी अपनी - अपनी
शहीद बना उसे लोग लगा रहे थे नारे कोई गिनाये शाहदते उसकी तो किसी के नजर आये गर्दीश में सितारे शहीद कैसा ,कौन क्या अर्थ है, मैं ए सोचूँ विवश हूँ जानकर भी क्यो भला मैं खुद को रोकूँ माफ करना ए द
मनुष्य के द्वारा अपना पहला कदम रखने से पहले संसार का कुछ भी ज्ञान नहीं होता है और मनुष्य संसार की चीजों से पूरी तरह अनभिज्ञ रहता है। वह अच्छा-बुरा,सही-गलत या संसार के किसी भी रिश्ते के विषय में अ
तेरी हसरतें और जोश ए जुनून कहानी किस्से ना बन जाए कहीं तुझे आदर्श बना किताबों में न पढ़ाया जाए डर है मुझे अपनी गलतियां छुपाने को वो भी यही तरीका अपनाएंगे और तुझे वफादार की श्रेणी में ला उन कागजों क
श्रवण ने घर आकर कुछ देर राहत की सांस ली, वह सोफे पर लेटे लेटे सोचता रहा कि उसकी जिंदगी तो जैसे एक दौड़ती हुई गाड़ी बन चुकी थी जब देखो नए नए प्रोजेक्ट्स पर काम करना, न खाने का टाइम न पीने का टाइम, यहां
रोज की तरह आज भी दोपहर एक बजे ऑफिस में लंच टाइम हो चुका था पर श्रवण अपने केबिन मे हाथ में कोरा कागज और पेन पकड़े न जाने किस उधेड़बुन में था तभी उसके दिल से आवाज आई, “ ये कैसी जिंदगी है, सब
स्वार्थ सिद्धि में बने यह रिश्ते क्या पत्नी बेटा और बाप लालच कुंडली मारकर बैठा जैसे पिंडरी में साँप जन्म लेते ही दे विदाई मृत्यु पर महंगाई का रोना भला मरे से क्या मिले जो उसके
मैं सुनता हूं ऐसा कि तेरी मुक्ति के लिए ईश्वर स्वयं तुझे सुनाएं गरुड़ पुराण...... देख जाग जमीन पर हो रहे हैं रिश्ते तार-तार निकाल रहे हैं मेरी जान......... तू आजाद होकर बेफिक्र उड़ता होगा आसमानों
सेहरे शादी सपने और मंजर भी देखा मौत का सबसे अलग न्यारा रिशता मिला तो वह दोस्त था ना कुछ देना मिलना और न कुछ चाह थी चोट जो लगती जरा सी भी निकलती पहले उसकी आह थी बेशक जीता होगा मुझे इस दुनिया क
किस्सा है सुरीली दादी का, दिव्या की प्यारी दादी का, दिव्या सालों से दादी से दूर है, दादी वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है, दिव्या ने माता पिता को टोका था, दादी को वृद्धाश्रम जाने से रोका था, पापा ने आ
चिता से उड़ती चिंगारियों को मिला न आसरा हवाओं का जिंदगी गुजारी जिनके खातिर क्या किस्सा सुनाएं उनकी वफाओं का दर्द बयां करें यदि मौत का तो जमीं क्या फट जाएगा आसमां जिन की खातिर जीवन त्याग आखिर इत
जन्म से रिश्ते मिलेतो कुछ खुद के ही बनाये फिर भी क्यों मन में रही आज बसी कोई तो मुझे अपनाए जीवन पंथ की ये बेला है इस सृष्टि का खेल ही ऐसा माया ने ही रिश्ते बुने जिन रिश्तो का मोल ही प
ऐ रब! ऐसा दिन कभी न दिखाना,कि खुद के ग़ुरूर में खो जाऊँ,पल दो पल अपनों के साथ बैठ न सकूँ,अपने आप में इतना मगरूर हो जाऊँ।न देना दुनियाँ भर की दौलत मुझे,पर बख़्श देना इतनी खुशियाँ ज़िन्दगी में,कि दिन भर का