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शीर्षक--सपने सपने के रोशनदान से,हर बार मेरे सपने मेरे अपने,को ही देखा है।इसके सिवा तो नजरों को,कोई और नही भाता है।मेरे सपने और मेरे अपने ही,बस दो नजर आते हैं।ऑंखें बंद होती है तो मेरे सपने,और ऑंख

अस्थि विसर्जन को चुनने चले थे साथी चार शमशान तक भला जाए कैसे किसको दे दायित्व सभी करें विचार बटवारा हमारा हक था कि काम करेगा अब जवाई उसे भी तो मिला मकान क्या हमने ही ली सारी कमाई वाह रे दुनिया

भाग-12 उदय की शिक्षा (अंतिम भाग) उदय और अनीता का गृहस्थ जीवन बहुत सुखमय में चल रहा था। दोनों का एक दूसरे के प्रति आत्मिक स्नेह था...दोनों के विचार भी एक दूसरे से बहुत मिलते थे। सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत

बाँधो अगर किसी से रिश्तों की डोर,तो सम्हालो बड़े अरमान से,रिश्तों का आदर करना सीखो,रिश्ते होते हैं बड़े काम के।रिश्तों को देना पड़ता है समय,और सींचना पड़ता है प्यार से,तब जड़ें जमती हैं गहराई में,और पेड़ बन

जलती चिता भी क्या खूब बयां कर गई गवाह मुझे बना रिश्तो की मौत का मेरी उम्मीदें भी तबाह कर गई सोचते रहा पूरी रात जीवन का यही है काला सच किसे समझे अपना किसे समझे पराया यही सोचकर हमने गुजारी उनकी यादो

👉यह कहानी काल्पनिक है,, , इससे किसी का कोई लेना देना नहीं है।👈 अंकल..........पापा की सर्विस सीट में किस किस का नाम होगा, यह सुन कर मैं हैरान सा रह गया..... क्योंकि ये सवाल बड़ा अजीब सा था, उस जगह....

देख देख बुड्ढे को चैन नही है इतनी बारिश हो री है पर मजाल है ये चैन से बैठ जाए।जब तक गिर नही जाएगा इसे चैन नही आने का।"इमरती देवी अपनी दस साल की नातिन चीनू से उसके नाना जी के विषय मे कह रही थी। इमरती द

समारोह में जाने से पूर्व मानसी प्रसन्न एवं उल्लासित थी । मन के किसी कोने में उसे यह अहसास था कि वह सदानंद के लिए विशिष्ट है । वरना कोई क्यों किसी अनजान लड़की के लिए परमानंद आश्रम व्यवस्था के विरुद्ध व

“ऐकला चलो रे“ की लीक पर चलते सदानंद की मुहिम का परिणाम कोई ख़ास उत्साह वर्धक नहीं रहा था । मोहल्लों, गलियों एवं बाज़ारों की धूल फाँकने के पश्चात भी लोगों की जेब से चंदा-उगाही की कोशिशें कुछ फलीभूत नही

स्वतंत्रता प्रिय लोगों की स्मृति में २८ अप्रेल १९७६ का दिन कभी न भूलने वाला दिन था। देश के संविधान का वह वचन-पत्र जो व्यक्ति को न्याय के अधिकार के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, उसी व

मन्नू की विदाई हो रही थी सुबह के चार बजे थे । मन्नू की मां यही सोच रही थी कि जल्दी से मन्नू की विदाई हो जाए अगर नन्हा आशू उठ गया तो कोहराम कर देगा।आशू मन्नू का भतीजा था जब से पैदा हुआ था अपनी बुआ के स

ब्रह्म-बेला की मंद-मंद बयार में शीतलता का आभास है।होली को बीते अभी एक सप्ताह ही हुआ है ।रात्रि की कालिमा के चिन्ह अभी पूर्ण रूप से लुप्त नहीं हो पाए हैं । पूर्व दिशा से हल्के प्रकाश की आभा का प्रस्फुट

गम का एक दिन हँसी-ख़ुशी के एक माह सा लगता है।  दुःखी आदमी का समय सदा बहुत धीरे-धीरे कटता है।। हँसी-ख़ुशी टिकती नहीं वह पंख लगाकर उड़ जाती है। दर्द के मारे जागने वालों की रातें बहुत लम्बी होती है।।

डॉ.निशा गुप्ता साहित्यिक नाम डॉ. निशा नंदिनी भारतीय का जन्म 13 सितंबर 1962 में उत्तर प्रदेश के  रामपुर जिले में हुआ था। पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता रामपुर चीनी मिल में अभियंता थे और माता स्वर्गीय राधा

बात बहुत पुरानी थी लेकिन नीलम को आज भी याद है।उसकी हल्दी की रस्म चल रही थी तभी उसे कुछ सामान यआद आ गया।वह हल्दी की रस्म निभाकर बाजार जाने के लिए तैयार हो रही थी तभी दादी ने आंगन मे से आवाज दी,"मेरी बन

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बेटियाँ निखारती है ,माँ का रूप । बेटियाँ  बन जाती है ,माँ का प्रतिरूप बेटियाँ फूल सी कोमल,चट्टान सी मजबूत  हैं  । बेटियाँ वो हैं जिनसे टिका  हम सभी का वजूद है। बेटियाँ हमदर्द है, हमारी पहली।

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गर भूलना इतना आसान होता  तो, जन्म देकर माँ  भूल जाती। बहन राखी का बन्धन भूल जाती। भाई, बहन की दिया वादा भूल जाता। व्रत रखकर  इन्सान ,खाना भूल जाता।। मौन व्रत रखने वाला , बोलना भूल जाता। लिख

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प्यार वो है, जो देता है एहसास। प्यार वो है, जो पूरी करता है  हर आस। प्यार वो है, कराता  है मह्सूस हमें  खास। प्यार वो है,जो हमारे साथ वक़्त-बेवक़्त है खड़ा। प्यार वो है, हमारे लिए  बिन सोचे ही है

नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन  सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी

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जब साल के आखिरी दिन को हम परिवार के संग मनाते हैं। जब मम्मी, माँ ,बड़ी माँ ,बुआ और दादी पकौड़े  सब मिल बनाते थे। मूँगफली  ,गजक ,मक्की के दाने सामने रखे हमें खाने को उकसाते थे । स्कूल का होम

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