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किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 64 वर्ष की रही होंगी | राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्ति थे सभी

किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 42-45 वर्ष की रही होंगी वो  अपने पति राम अमोल पाठक जी  और चार बच्चों बड़ा बेटा  चन्दन, बेटी  पूर्णिमा,मंझला बे

नारी तू ही नारायणी,मां, जननी, जगदम्बा।नारी से होता संसार,नारी की महिमा अपार।।नारी होती है स्वयं शक्ति,होते हैं इसके विभिन्न रूप।जरूरत खुद पहचानने की,होते हैं क्या इसके स्वरूप।।नारी दुर्गा नारी ही शक्त

किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती कोई बीस वर्ष की रही होगी और बिहार के एक गांव, अपने ससुराल में अपने पति राम अमोल पाठक, नवजात शिशु चन्दन और जेठानी क

राम अमोल पाठक जी बिहार के एक गांव के भरे-पुरे परिवार से थे |  गांव में आँगन वाला सबसे ऊँचा मकान राम अमोल पाठक जी का था, घर पर पिताजी,भैया-भाभी, एक प्यारी सी भतीजी और बीवी अमरावती थी, अभी-अभी राम अमोल

हे पितरों! स्वीकारो नमन हमारा,तुमसे ही है ये अस्तित्व हमारा,देना सदा आशीष हमें तुम,हम हैं छोटा सा अंश तुम्हारा।वैसे तो हर दिन हैं आप,सूक्ष्म रूप में साथ हमारे,पितृ- पक्ष में स्वागत आपका,मिलकर करते हम

मैं भूखा हूं प्यार का ,मुझे सहारा चाहिए।मुझे अनाथ ना कहे कोई,इससे छुटकारा चाहिए।मैंने नही किया कोई पाप,मैं किसी के कर्मों का फल हूं।मैं किसी मां-बाप की ,असमय मृत्यु के का जीवन हूं।मैं चाहता हूं मुझे,&

जिंदगी का सफर अनिश्चित है,एक राह की तरह।हम अनजान हैं इस सफर पर,एक राही की तरह।मिलेंगे कब मोड़ इस राह में,हमें नहीं पता होता है।कहां गिरि और कहां सरिता,यह सफर की अनिश्चितता का दौर होता है।।कहां मिलेंगे

बढ़ती आबादी छीन रही है,गांवों की सुख सुविधा को।रोक सको रोक लो अभी ,गांवों की इस दुविधा को।।जहां फसल लहलहाती खड़ी रहती,उनको उजाड़ा जा रहा है।जहां शुद्ध अन्न जल मिलता था,उसे दूषित बनाया जा रहा है।।धीरे

(यह रचना भारत में बसने वाले उन लोगों की हालत का साक्षात बयान करती है जो अपनी जिंदगी का विनाश अपनी आंखों के सामने होते हुए देखते है। इसके अलावा गांव के गंदे बच्चों की संगति जो उसे सदा के लिए बर्बाद करक

जिंदगी चलती है एक सर्कस की तरह।कभी खुशी कभी गम धूप छांव की तरह।जिंदगी कभी तमाशा बनकर रह जाती है।लोगों को अनोखे खेल दिखाती है।।बचपन में जब इससे खेलना चाहते हैं सभी।बचपन से निकलकर पढ़ाई की राह आ पड़ी।आत

प्रेम तब ही गहरा होता है जब विरह होता है।सभी प्रेम की ही बातें लिखते है जरा सोचे विरह के बाद जो मिलन होता है उसमे प्रेम रिश्तों की जड़ों तक समा जाता है ।एक कहानी के रूप मे आओ समझे।नंदिनी मां बाप की इक

गांव की सुन्दर बालिका प्यारा-सा नाम सारिका, ये कविता उसकी कहानी हैजो मुझे आपको सुनानी है,कहानी का पहला चरण है सूरज और उमा का आँगन है,एक कमरे में प्रसव-पीड़ा से उमा आज बेचैन सी है,आँ

मुद्दतों बाद भैया और दिव्या संग मुस्कुरा रही थी,अरसों बाद आज सुरीली आज मायके जा रही थी | सुरीली की सवारी गांव के बहुत पास आ गई थी,पर आज सुरीली गांव पहचान ना पा रही थी | जंगलों और पर्वतों&nbs

ज्यों-ज्यों सुरीली की मंज़िल करीब आ रही थी, त्यों-त्यों सुरीली की धड़कन बढ़ती जा रही थी | आठ बरस बाद वो अपने घर को देख रही आज, जिसे उसके पति ने बनाया था मसक्क्तों के बाद | दिव्या हौले से अपनी द

बात बहुत पुरानी है ।शायद किंवदंती है ।पर पता नही क्यों जब भी कोई मुंहबोली बहन के विषय मे बात आती है तो जेहन मे नरसिंह का भात आ जाता है ।आज के विषय पर ये कहानी बिल्कुल सटीक है नानही बाई के कोई भाई

आतंक केवल आतंकवादी से नही होता।शगुन ने आतंक प्रत्यक्ष देखा है।वह आतंक के साये मे जी है।शगुन अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी।मुँह से बाद मे निकालती थी चीज पहले हाजिर हो जाती थी।लाड प्यार से पली-बढ़ी थी

थक जाती हैं आँखें दिखना कम हो जाता है झुक जाती है कमर चलना मुश्किल हो जाता है देता कानों से कम सुनाई आवाज उलझने लगती है काँपने लगते हाथ गर्दन हिलने लगती है शरीर

आज ही सुमी को मां का फोन आया गांव से कुन्ती चाची की तबीयत बहुत खराब है।सुमी के पति ने उसे फटाफट ट्रेन मे तत्काल की टिकट करा कर बैठा दिया और ये कहा कि अगर टीटी कुछ कहे तो कुछ पैसे देकर अपना पीछा छुड़ा

वो लड़का टैक्सी में बैठते ही ड्राइवर से बोला -भैया आप Mahabodhi  Mahavidyalaya (B.Ed.), Nalanda   ले चलिए । जल्दी लेट हो रहे है हम । यह कहकर वह सौम्या की तरफ उससे पूछने के लिए

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