“मुक्तक”
बहुत प्यार हमने तुमसे किया था मगर तुमने दिल का इशारा न समझा।
जतन यार कितने मन से किया था डगर चलना तुमने गवारा न समझा।
बड़े बे सहुर हो गए झूठ में तुम अमानत लिए ही गए रूठकर तुम-
पतन किया तुमने मेरे वफा का बसर करके घर में गरारा न समझा॥-1
नवल थे इशारे धवल रोशनी थी प्रभा प्रात की चल चितारा न समझा।
उगी लालिमा थी किरणें खिली थी हवा प्रीति की पल सरारा न समझा।
बहुत बदगुमा हो बिगड़े खिलाड़ी छुपने की खातिर तुम तकते पहाड़ी-
रहन शान की थी सहन मान की थी जिगर तुमने नैना नजारा न समझा॥-2
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी