मापनी- 1222 1222 1222 1222, समांत- आर, पदांत- के वो दिन
"गीतिका"
भुला बैठे हमारे प्यार और इजहार के वो दिन
नहीं अब याद आते है मुहब्बत प्यार के वो दिन
लिखा था खत तुम्हारे नाम का वो खो गया शायद
कहीं पर शब्द बिखरे हैं कहीं मनुहार के वो दिन।।
उठाती हूँ उन्हें जब भी फिसल कर दूर हो जाते
बहारों को हँसा कर छुप गए त्यौहार के वो दिन।।
लगा अनजान बनना ही फिजाओं को सुहाती है
उड़ा कर ले गए रौनक कुढ़न इंतजार के वो दिन।।
खयालों में नहीं चाहत किसी के अब यहां दिखती
हवाएं भी नहीं लाती महक इजहार के वो दिन।।
भला गौतम गुजर करता किफायत के मोहल्ले में
बुलाता जानकर जालिम हँसी इजहार के वो दिन।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी