"चौपाई मुक्तक"
वन-वन घूमे थे रघुराई, जब रावण ने सिया चुराई।
रावण वधकर कोशल राई, जहँ मंदिर तहँ मस्जिद पाई।
आज न्याय माँगत रघुवीरा, सुनो लखन वन वृक्ष अधिरा-
कैकेई ममता विसराई, अवध नगर हति कागा जाई।।-1
अग्नि परीक्षा सिया हजारों, मड़ई वन श्रीराम सहारो।
सुनो सपूतों राम सहारो, जस गंगा तस तपसी तारो।
विटप लगाओ हे मन कुटिला, वन नहिं बाग न साधू कपिला-
हनूमान के पथ अनुसारो, मातु अशीष अमर युग चारो।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी