"कुंडलिया"
लेकर दीपक हाथ में, कर सोलह शृंगार।
नृत्य नैन सुधि साधना, रूपक रूप निहार।।
रूपक रूप निहार, नारि नख-शिख जिय गहना।
पहने कंगन हार, लिलार सजाती बहना।।
कह गौतम कविराय, परीक्षा पूरक देकर।
यौवन के अनुरूप, सजी सुंदरता लेकर।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी