वज़्न---122 122 122 122✍️अर्कान-- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन✍️ क़ाफ़िया— आते स्वर की बंदिश) ✍️रदीफ़ --- बड़ी सादगी से
"गज़ल"
हँसा कर रुलाते बड़ी सादगी से
खिलौना छुपाते बड़ी सादगी से
हवा में निशाना लगाते हो तुम क्यों
पखेरू उड़ाते बड़ी सादगी से।।
परिंदों के घर चहचहाती खुशी है
गुलिस्ताँ खिलाते बड़ी सादगी से।।
शिकारी कहूँ या अनारी कहूँ मैं
हो महफ़िल सजाते बड़ी सादगी से।।
बढ़े जा रहे हो मिला यह फलक तो
कहीं घर बनाते बड़ी सादगी से।।
बुलाकर शिकायत को मुँह क्यों लगाते
अदावत निभाते बड़ी सादगी से।।
चलो मान लेते हैं गौतम गलत है
उसे तुम बताते बड़ी सादगी से।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी