त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] ◆* विधान~ {4 चरण,प्रति चरण 32 मात्राएँ, प्रत्येक में 10,8,8,6 मात्राओं पर यति, प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत, प्रथम दो चरणों व अंतिम दो चरणों के, चरणान्त परस्पर समतुकांत तथा जगण वर्जित,प्रत्येक चरणान्त में गुरु(2), चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद, मनोहारी हो जाता है।}
"त्रिभंगी छंद"
हे नयना नागर, सब गुन आगर
गिरिवर धारक, खल हंता।।
हे नियति नियंता, अति बलवंता
छमहु महंता, सुख कंता।।
प्रभु विरल मनोरम, गँवई गमनम
अपलक चितवन, छवि न्यारी।।
हे राधा रमणम, मम चित शरणम
कोमल चरणम, बलिहारी।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी