अगर देश का पीएम वो भी 56 इंच वाला किसी समस्या पर दूसरी बार बयान देने को बाध्य हो जाए तो खुद सोचिये वो समस्या कितनी गंभीर होगी।आज देश में भूखमरी, आतंकवाद, नक्सलवाद, बेरोजगारी से बड़ी समस्या गौ-रक्षक है।कैसे आइये बताते है...
दरअसल गौ-रक्षक नामक इस समूह का उदय आज़ादी के वक़्त ही हुआ था। पाकिस्तान को नर्क बनना ही था पर भारत को नर्क बनाने की जिम्मेदारी इन्होंने अपने कंधे पर ले ली थी। सबसे पहला दंगा गौ रक्षको ने 22 अगस्त से 29 अगस्त 1967 को रांची में किया जहां उन्होंने हिन्दू समाज की ही 210 से ज्यादा दुकाने जलाकर राख कर दी और करीब 70 लोगो को मार डाला।
इसके बाद भी गौ रक्षको की भूख शांत न हुई..सितंबर 1969 को गुजरात में और 1980 को मोरादाबाद में इन्होंने फिर से हैवानीयत का नंगा नाच किया और करीब 518 हिन्दू लोगो को गुजरात में और 377 लोगो को मोरादाबाद में मौत के घाट उतार दिया, महिलाओं को बीच सड़क घसीटा।
1984 का भिवंडी दंगा ले लीजिए या 1985 का गुजरात दंगा,1987 मेरठ में तो 1989 भागलपुर फिर 1990 हैदराबाद...गौ रक्षको के मुह खून लग चुका था।इसी दौरान इन्होंने कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को मार मार के भगाया..उनकी बहू बेटियों के गुप्तांगो में लोहे की रॉड डाल दी। और फिर गोधरा में पूरी ट्रैन को गौ रक्षको द्वारा आग लगा देना कौन भूल सकता है।
आज गौरक्षक देश में सबसे बड़ी समस्या है...वे कश्मीर में सेना को पत्थर मारते है..सेना को बलात्कारी कहते है,भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगाते है और तो और कसाब व अफजल गुरु की बरसी मनाते है क्योंकि वो आतंकी नहीं हीरो है इन गौरक्षकों की नज़र में।
इन गौ रक्षको के कारण आज पाक के जासूस आसानी से भारत में घुस जाते, यही गौ रक्षक पाक की जीत पर हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा कर पटाखे चलाते और यही गौ रक्षक बुरहान वानी के जनाजे में शामिल होकर देश तोड़ने की कोशिश कर रहे है।
हमारे पीएम साब मुर्ख थोड़े ही है...अगर उन्हें आतंकवाद का कारण, बेरोजगारी का कारण, सांप्रदायिक हिंसा का कारण ये लोग लगते है तो यही लोग हैं भी।आप अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने बंद कीजिये...सोशल मीडिया पर दोस्त बंधु से लड़िए अगर वो आपकी विचारधारा न मानता हो...हर पोस्ट में 56 इंच वाला गणित निकालिए... मरी हुई कांग्रेस व AAP को ट्रोल कीजिए, पीएम साब के इज़राइल दौरे पर छाती चौड़ी कीजिये..उनके हर एक भाषण से चीन की पराजय का गणित निकालिये, सुधीर चौधरी व रजत शर्मा जैसे बेगैरत पत्रकारों को देवता बनाइये...क्योंकि आपका जमीर मर चुका है।हिम्मत न है आपमें विरोध करने की..आपने उन्हें वोट नहीं दिया,आत्मा दे दी है और बिना जमीर/आत्मा के शरीर..शरीर नहीं लाश है...ज़िंदा लाश!
मूल लेख क : श्रीकांत चौहान