डिअर रणवीर,
ये एक प्रेम पत्र है. ये तुम्हें शुक्रिया कहने का एक तरीका भी है. शुक्रिया वो चीजें करने के लिए जो तुम्हारे दूसरे साथी कभी नहीं करेंगे. जानते हो, शेक्सपियर के नाटक टेम्पेस्ट में एक लाइन को याद रखने के लिए मैंने कलम से एक फोटोकॉपी किए हुए पन्ने पर लिखा था, ‘डू द रेक्स’. शायद इससे तुम्हें आइडिया मिले कि मुझे कितना प्रेम है तुमसे. एक वजह ये है. और बाकी वजहें मैं आगे लिखने जा रही हूं.
मेरे दिल और दमाग में तुम तब घुसे, जब बैंड बाजा बारात को बार बार देखते हुए मुझे यकीन होने लगा कि एक छोटे शहर का लड़का आते ही अपनी अलग पहचान बना सकता है. तुम किसी बॉलीवुड खानदान से नहीं थे. तुम्हारे पिता कोई फिल्म स्टार नहीं थे. गरीब नहीं थे, लेकिन बाहरी तो थे तुम. मगर तुमने कर दिखाया. जैसे बिट्टू ने कर दिखाया था. मुझे यकीन होने लगा था कि मैं भी अपने सपनों को सच कर सकती हूं. तुम्हारे अंदर एक बेशर्म, मुंहफट लड़के की छवि दिखाई पड़ती है– फिर चाहे वो कोई टॉक शो हो, कोई इंटरव्यू या को विज्ञापन. तुम्हें भी खुद से प्रेम है, जैसे मुझे है.
तुम मुझे अक्सर मेरे उस इश्क कि याद दिलाते हो जो मुझे बचपन से टीवी के लिए रहा है. जो इश्क मुझे खुद से रहा है. मैं बचपन से हमेशा सबके आकर्षण का केंद्र बनी रहना चाहती थी. फिर चाहे मुझ जैसी मोटी, गोलू-मोलू बच्ची का ‘जुमा-चुम्मा’ गाने पर, दादी मां की तालियों के साथ, किसी और की बर्थडे पार्टी में नाचना ही क्यों न हो. मालूम है, मुझे तालियों से प्रेम था. कि कुछ ऐसा करूं कि कोई मुझे भूले ना. सब तारीफ करते रहें. तारीफ तो लोग तुम्हारी भी करते थे. फिर चाहे वो ‘बैंड बाजा बरात’ का बिट्टू हो, लुटेरा का वरुण हो, या ‘बाजीराव मस्तानी’ का ‘बाजीराव’. हर परफॉरमेंस पर तुम्हें तालियां मिलीं. मैंने भी जमकर तालियां पीटीं.
वो कॉन्डम का ऐड. मुझे याद है, पूरा गाना रट गया था मुझे. तुम्हारी फिल्मों के बाद वो ऐड आना, वैसा था, जिसे अंग्रेजी में ‘आइसिंग ऑन द केक’ कहते हैं. तुम, एक मुख्यधारा के सिनेमा एक्टर होते हुए भी उस चीज का ऐड करने के लिए राजी हुए जिसे हमारे समाज में ‘संस्कारी’ नहीं माना जाता. तुमने खुलकर लोगों से कहा कि सेक्स एक अच्छी चीज है, इसे प्रोटेक्शन के साथ करें. किसी के भी साथ करें, ये आपका फैसला है. और ये बात इस ऐड में बड़ी नॉर्मल बात के तौर पर उभरी. इस ऐड के बाद भी तुमने कभी छिपने की कोशिश नहीं की. कभी कोई शर्मिंदगी नहीं दिखाई. और हां, उस ऐड में मुझे सेक्स को लेकर वो चिपचिपी सी फीलिंग नहीं आई जो कॉन्डम के बाकी ऐड देखकर आती है. यहां सेक्स एक नॉर्मल सी क्रिया थी जिसका लुत्फ़ उठाना चाहए. ये कोई छिपकर करने वाली चीज नहीं थी.
तुमने कई नौकरियां बदलीं. विज्ञापनों की एजेंसी में काम किया, कॉपीराइटिंग की. और अंततः फिल्मों में आने के पहले तुम शाद अली के असिस्टेंट डायरेक्टर रहे. तुमसे मैंने सीखा कि भले ही कोई अपने काम, अपने सपनों को लेकर कितना ही स्पष्ट हो, कभी भी दूसरे विकल्प देखना, उन्हें ट्राय करना भी बुरा नहीं है. शायद सबके पास ये लग्जरी नहीं होती कि वो बार बार नौकर बदल सकें. लेकिन जीवन का हर काम, हर पड़ाव हमारे लिए नए तजुर्बे लेकर आता है.
तुम्हारा एक ऐसा ही एक्सपेरिमेंट था AIB रोस्ट में जाने का. उसका नतीजा बुरा हुआ. तुमने सब सुना, एक खिलाड़ी की तरह गालियों के इस खेल को खेला. अर्जुन कपूर के साथ तुम्हारा मखौल उड़ाया गया. अश्लीलता के आरोप लगे, एक के बाद एक. कोर्ट केस हुए. पूरे देश में बहस होती रही. मैं सोच ही रही थी कि तुम क्या जवाब दोगे. मैंने देखा तुमने यहां कन्नी नहीं काटी. तुमने खुलकर कहा कि तुम इस रोस्ट में जाने के लिए शर्मिंदा नहीं हो, न कभी होगे. तुमने इसे उसी तरह हैंडल किया, जिस तरह आम लोग करते हैं. और वही सही भी था.
तुम्हें तुम्हारे ‘लाउड’ और अजीब कपड़ों के लिए बहुत कुछ कहा गया. लेकिन तुमने उसपर भी ताबड़तोड़ बढ़िया जवाब दिए. मुझे सचमुच इस बात से तकलीफ है कि एक्टर्स जहां भी जाएं, उनके कपड़ों की आलोचना हो. हां, ये बात और है कि तुम हमेशा अपने कपड़ों की वजह से आकर्षण का केंद्र बने रहे और कभी ख़बरों से बाहर नहीं हुए.
और हां, जिन औरतों के साथ तुम रहे, फिर भले ही असल में तुमने उन्हें प्रेम किया हो, या वो अफवाहें हों, तुमने इसके बारे में खुलकर बात की है. तुमने उनका साथ दिया है. मैंने तुम्हें फॉलो किया है और देखा है कि तुमने कैसे अपनी गर्लफ्रेंड की उपलब्धियों पर गर्व किया है. तुमने कैसे इस बात को जाहिर किया है कि हर रिश्ता कवल पुरुषों का नहीं होता है. यही नहीं, किस तरह धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्री में पुरुष और औरतें बराबरी की तरफ बढ़ रहे हैं. ये शायद आखिरी कदम था मुझे तुम्हारा फैन बनाने की ओर. और मैंने ये भी पार कर लिया.
सप्रेम,
तुम्हारी फैन