स्थान : सरौंहां निवसथ परमात्मा यदि शरीर में शक्ति, मन में विश्वास और बुद्धि में समझ देता है साथ ही चैतन्य को जागृत रखता है तो हमें कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए l
आचार्य जी ने 18 मन्त्र वाले ईशावास्योपनिषद्के प्रथम मन्त्र ईशावास्यमिदं.... की आज भी व्याख्या करते हुए दूसरे मन्त्र
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः l एवं त्वयि नान्यथेतो s स्ति न कर्म लिप्यते नरे ll
और तीसरे मन्त्र असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाssवृताः l
तांस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः l l
की व्याख्या की l प्रस्तुत है शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म के प्रवर्तक गुणाधार ऋजु भासक युगभारती -संरक्षक महनीय श्री ओम शङ्कर त्रिपाठी जी