नियम एक व्यवस्था है जिसका हम नियमित रूप से जितना पालन करेंगे उतना लाभ होगा भक्ति माया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा है जो होना है जैसे होना है जिस प्रकार से होना है वो होकर रहेगा विवेकी पुरुष को आत्मस्थ होना ही चाहिये यदि उसका मायामय कर्म से छूटने का मन नहीं होगा तो वो छूट नहीं पायेगा (विवेक चूडामणि दसवां अध्याय ) एक वरिष्ठ वकील ने केस कैसे जीता आचार्य जी ने यह भी बताया आचार्य जी ने अपने एक प्रतिवेश्य श्री रमेश कुमार सिंह जी का भी जिक्र किया |