स्थान :सरौंहां (इस प्रातिदैवसिक प्रातर्होम को आप अपनी संश्रवण रूपी उपस्थिति से सफल बनायें )
कबीरदास जी की एक साखी को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि सांसारिक सुख हमारे यथार्थ स्वरूप को विस्मृत कर देता है अयोध्या कांड में लक्ष्मण गीता के अन्तर्गत आने वाले एक दोहे का उदाहरण दिया |
गज -ग्राह की कथा बताते हुए आपने कहा कि सुख में हम लोग ईश्वर को भूल जाते हैं और दुःख में याद करते हैं |
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम्। अपघ्रन्तो अराव्णः।। (ॠ.9/63/5) द्वारा ऋषि कहता है संपूर्ण विश्व को हम आर्य बनायेंगे l भारत भूमि भावना है संसार में संघर्ष है लेकिन संसारेतर जीवन एक है l
प्रसंग :
1. आचार्य जी जब छोटे थे तो गांव में जादू टोना दिखाने वाले सांप दिखाने वाले टूटे फूटे बर्तन बनाने वाले कान का मैल साफ करने वाले आते थे |
2. आचार्य जी जब विद्यालय में थे तो गांव में सड़क बनवाने की कोशिश की उसी से संबन्धित एक प्रसंग बताया प्रस्तुत है भावुक श्रोताओं के समक्ष |