स्थान : सरौंहां
मूल विषय : चार खंड वाले केनोपनिषद् में तीसरे से चौथे खंड के बीच की एक कथा देवासुर संग्राम समाप्त होने पर जब देवता जीत गये तो उन्हें दम्भ हो गया इसी दम्भ को दूर करने के लिये परब्रह्म एक दिव्य यक्ष का रूप लेकर प्रकट हो गये......... औपनिषदिक ज्ञान का कथा भाग अत्यधिक तात्त्विक है रूपवान धनवान बलवान होने के बाद भी मनुष्य में शील होना ही चाहिए l आदर्श कभी प्राप्त नहीं होता लेकिन उसके लिए प्रयत्न चलते रहते हैं |
आचार्य जी ने अपनी एक कविता भी सुनाई :-
कभी मैं हूं कभी तुम हो कभी दोनों हुआ करते हैं l
कठिनतम काल में भी एक दूजे की दुआ करते हैं ll
मगर जब कोई भी बस सिर्फ अपने में सिमट जाये l
तो अंधेरे में अकेले सिर्फ यादों को छुआ करते हैं ll
जो कहता है वसुधैव कुटुम्बकम् जो कहता है सर्वे भवन्तु सुखिनः... जो कहता है है देह विश्व आत्मा है भारत माता.. उस हिन्दू के धर्म के विध्वंस हेतु एक सम्मेलन का आयोजन हो रहा है हिंदू धर्म के विध्वंस हेतु सम्मेलन भारत के अनेक हिंदू-विरोधियों ने आगामी १०-१२ सितंबर को एक मेघ-मंत्रणा (ऑनलाइन कॉनफरेंस) का आयोजन किया है: “वैश्विक हिंदुत्व का विखंडन” (Dismantling Global Hindutva) । नाम से ही स्पष्ट है कि यह सीधे-सीधे हिंदू धर्म पर आक्रमण है। प्रायोजकों के रूप में 45+ विश्वविद्यालयों का नाम दिया गया है प्रमा को मद का बसेरा भा गया है यह गम्भीर रोग है|
जिसने अच्छा किया उसे प्राप्त कर लें जिसने बुरा किया उसे त्याग दें हम युगभारती के लोग चिन्तन मनन विचार करें संगठन के लिए सन्नद्ध हों ज्ञान का उपयोग राष्ट्र के लिए करें विश्व को ललकार कहें न हम मरे हैं न मरते हैं जैसा हमने प्रतिकार किया उस तरह का उदाहरण अन्यत्र नहीं है | हमें वो शक्ति दे भक्ति दे विचार दे संकल्प दे संगठन की भावना दे ताकि हम इस वैश्विक दुश्चक्र को भेद करके दुनिया को बता सकें कि सचमुच में जीवन जीने की राह यही है | इन्हीं विचारों को समेटे हुए प्रस्तुत है दीप्तात्मन्आ चार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी का |