अखण्ड हिन्दुराष्ट्र का हृदय हृदय में वास हो, उपासना गृहों में शौर्य शक्ति का निवास हो,
"भविष्य" में न स्वार्थ भीरुभावना प्रविष्ट हो , हृदय में वीरता रहे स्वभाव किंतु शिष्ट हो।
ऐसी ही ओजस्वी कविताओं से झकझोरने वाले मनस्वी कवि वाग्विदग्ध परमेष्ठिन श्री ओम शङ्कर त्रिपाठी जी का एक और अभिसन्धान प्रस्तुत है (दो भाग में )
दिनांक : 18-08-2021
स्थान : सरौंहां
प्रसंग : स्टेशन पर दण्डी स्वामी द्वारा दंभी विलायती बाबू को करारा जवाब |
मूल विषय : हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि ऋषियों के देश में रहते हैं l हम सब परमात्मा के ही अंश हैं l परमात्मा ही किसी को किसी के माध्यम से प्रबोधित करना चाहता है माध्यम को दम्भ नहीं करना चाहिये | विवेक चूडामणिऔर रामचरित मानस को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य होने के बाद यदि मनुष्यत्व की अनुभूति न हो तो यह दुर्भाग्य है l आचार्य जी ने ईशावास्योपनिषद् के सातवें और आठवें छन्द का स्पर्श करते हुए नवें छन्द अन्धं तमः प्रविशन्ति.... की व्याख्या की शिष्यत्व और दम्भ(स्वयं को ज्ञानी समझना ) में अन्तर है l शिष्यत्व धारण करके माध्यम(जो शिक्षा दे रहा है ) से लाभ लिया जा सकता है l किसी विषय का अध्ययन करके उसे पचाएं l दंभी सुखी नहीं रहता l दम्भ त्याग कर जिज्ञासु भाव से प्रश्न करें l
उद्देश्य : सदाचार वेला का उद्देश्य है कि आपका पौरुष और विवेक जागे जो स्वार्थ, अशिष्टता, म्रक्ष आदि को बार बार त्यागने के लिए कहते हैं जो प्रायः यह वाक्य दोहराते हैं जो करता है परमात्मा करता है परमात्मा सब अच्छा ही करता है देशभक्ति को भक्ति का उदात्ततम रूप मानते हैं और कहते हैं कि देशभक्ति से ही मनुष्यता सनाथ होती है जिनका मार्गदर्शन लेने के लिए लोगों द्वारा प्रायः उन्हें सम्मेलनों में,बैठकों में बुलाया जाता है ऐसे अत्यादित्य सुवक्ता परमविद्वान आचार्य श्री ओमशंकर त्रिपाठी जी का |