प्रस्तुत है परमप्रख्य आशुकवि आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी का आज दिनांक 29-08-2021 का उद्बोधन कार्य कर्म का प्रभाव है कर्म भावनाओं की अभिव्यक्ति है और भावनाएं परमात्मा की एक ऐसी मानवीय निधि है जो प्राप्त हो जाए तो समझना चाहिए बहुत कुछ मिल गया लेकिन भावनाओं में नैराश्य बेचारगी अश्रु-पतन न हो l
अर्थ-प्रधान जीवन है तो स्वार्थ भी बहुत ज्यादा होगा स्वार्थ होगा तो भय भी होगा l जिसके प्राण संपदा में बसते हों जिसके प्रान भोग में बसते हों भोग को नष्ट कर दें तो उसके प्राण अवश्य चले जायेंगे l मनोयोग से कर्म करते हुए संकल्पबद्ध होकर आत्मविश्वास आत्मशक्ति आत्मचिन्तन परमात्मभक्ति और संयम साधना के साथ जीवन को संगठित बनाते चलें l इस समय संगठन की आवश्यकता है l
सूचना : आज आचार्य जी के बड़े भाईसाहब का जन्मदिवस उन्नाव विद्यालय में मनाया जायेगा |