ओम शङ्कर त्रिपाठी जी द्वारा प्रोक्त अत्यन्त भविक भाविक सारस्वत
स्थान :उन्नाव (आसनान्तरित )
सूचना :आचार्य जी कोआज 8 बजे स्वतन्त्रता दिवस के एक कार्यक्रम में जाना है l
विषय : ईशावास्योपनिषद् छन्दों की व्याख्या
आचार्य जी ने आज चौथे छन्द अनेजदेकंमनसो जवीयो... और पांचवे छन्द तदेजति तन्नैजति.... की व्याख्या की किसी को वृक्ष में ईश्वर के दर्शन हो जाते हैं किसी को पत्थर की मूर्ति में जिसके भीतर शिवत्व प्रवेश कर जाता है उसके भीतर सत् संकल्प भी जागृत हो जाते हैं l हमारे यहां अध्यात्म में परमात्मा का जीवात्मा का संसार का संबन्ध प्रदर्शित किया गया है l
उपनिषद् का अर्थ है पास बैठना जिसके प्रति आपको श्रद्धा हो भाव जगत में उसके पास बैठ जायें उन क्षणों की अनुभूति करिये जब आपको आत्मशक्ति प्राप्त होती है राष्ट्र -धर्म ही जिनके लिए सर्वोपरि धर्म है जिनके संबोधनों में ध्रौव्य है कि
भारत पुनः अखंड स्वरूप को प्राप्त करेगा जिनकी वाणी और कर्मों में एकरूपता है जो शौर्य -प्रमण्डित अध्यात्म की
वश्यकता पर लगातार बल देते रहते हैं और जो परिख्याति के अनुरूप काव्य -शिल्प से किसी को भी विमोहित कर देते हैं ऐसे मनीषी धीमान् श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी को सुनने का यदि अवसर मिले तो ऐसे अवसर को कौन गंवाना चाहेगा कदाचित् कोई नहीं तो प्रस्तुत है उन्हीं के ऊषक वेला वाले प्रात्यहिक संबोधनों में से एक आज