स्थान : उन्नाव जहां प्रेम, आत्मीयता, विश्वास, एक दूसरे के प्रति चिन्ता और एक दूसरे के प्रति आनन्द हो वह परिवार कहलाता है परिवार बढ़ता है तो आनंद होता है और हमने ने तो पूरी वसुधा को ही परिवार माना है जहां हमें शक्ति की आवश्यकता हो वहां शक्ति भक्ति की आवश्यकता हो वहां भक्ति जहां विश्वास की आवश्यकता हो वहां विश्वास और जहां अविश्वास की आवश्यकता हो वहां अविश्वास यह विवेक यदि हमारे अन्दर आ जाता है तो हम बहुत आनन्दमय हो जाते हैं और विवेक न होने की स्थिति में पग पग पर क्षण क्षण में दुःखी होते हैं | उद्भव पालन प्रलय यह सृष्टि की कहानी है l हम आर्य अनार्यों को ऋषित्व के माध्यम से सुधारना चाहते थेl इसके बाद हम अपने विश्वगुरुत्व में सीमित होते चले गये और स्वार्थ में रत हो गये परिणाम हुआ आर्य सिमटते चले गये अनार्य बढ़ते चले गये l हमारा कर्तव्य है विकृति का विनाश हो संस्कृति का विकास हो आप जो काम करें उसे प्रमाणिकता से करें परिणाम पर चिन्ता नहीं चिन्तन करिये अर्थोपार्जन परिणाम नहीं है यशोपार्जन परिणाम होना चाहिए आचार्य जी ने उपार्जित ईश्वरत्व के बारे में बताया |
सूचना :कल उन्नाव विद्यालय में कार्यक्रम है उसमें आप सादर आमन्त्रित हैं |