स्थान -- सरौंहां सदाचार एक सतत उपस्थित रहने वाली व्यवस्था है परिस्थिति है आचरण है, मनुष्य के साथ कोई न कोई आचरण संबद्ध रहता है और यदि आचरण सत्हो तो उसको भी आनन्द आता है और जिसके साथ वो आचरण संलग्न हो उसको भी आनन्द आता है आनन्दमय जीवन ही सुख सुविधा सराहना और संतोष प्रदान करता है | आकर्षणों से युक्त होकर भी वैराग्य के साथ जीवन जीने का अभ्यास होना चाहिए शंकराचार्य जी ने विवेक चूडामणि का गीताभाष्य, ब्रह्मसूत्र भाष्य में विस्तार किया है| जीवात्मा को यदि परमात्मा को प्राप्त करने की भी लालसा है तो वह विकार है |
प्रसंग : -
1 बङ्गाल के राजनीतिज्ञ सामाजिक कार्यकर्ता देशभक्त अश्विनी कुमार दत्त (15-01-1856, 7-11-1923 ) और उनके गुरु
राजनारायण वसु की भेंट |
2. "यह भी नहीं रहेगा "
3. कवि विद्वान रामेश्वर द्विवेदी जी और आचार्य श्री ओमशंकर जी की भेंट |
कविता : जीवन पथ मोहक जरूर है l इसमें मगर घुमाव बहुत हैं l l
(आज के उद्बोधन में आचार्य जी ने जिन युगभारती सदस्यों का नाम लिया उनके नाम हैं | डा उमेश्वर पांडेय जी मनीष कृष्णा जी और डा पवन मिश्र जी )
उपर्युक्त तीनों प्रसंग क्या हैं और आचार्य जी की कविता के और अंश क्या हैं इसके लिए| यह उद्बोधन सुनें |