आचार्य जी जब 6वीं/ 7वीं कक्षा में अध्ययनरत थे तो उस समय की एक घटना बताई l श्री राम चरित मानस में तत्व है, तथ्य है कथा भी है और सलीके से रखे गये प्रसंग भी हैंl हम लोगों का ध्यान में यह भाव प्रविष्ट हो कि सारा संसार एक नाटक है और हम लोग खिलौने हैं l परमात्मा की कृति के रूप में हम लोगों के लोककल्याण के कर्तव्य हैं l
भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा । तिन्हहि राम पद अति अनुरागा।।
तापस सम दम दया निधाना । परमारथ पथ परम सुजाना।।
माघ मकरगत रबि जब होई । तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं।।
पूजहि माधव पद जलजाता । परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।
भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन।।
तहाँ होइ मुनि रिषय समाजा । जाहिं जे मज्जन तीरथराजा।।
मज्जहिं प्रात समेतउछाहा । कहहिं परसपर हरि गुन गाहा।।
दो0-ब्रह्म निरूपम धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग।
कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग।।44।।
एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं।।
प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा।।
एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए।।
जगबालिक मुनि परम बिबेकी। भरव्दाज राखे पद टेकी।।
सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे।।
करि पूजा मुनि सुजस बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी।।
नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्व सबु तोरें।।
कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौ न कहउँ बड़ होइ अकाजा ।।
दो0-संत कहहि असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव ।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव ।।45।।
अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू । हरहु नाथ करि जन पर छोहू।।
रास नाम कर अमित प्रभावा । संत पुरान उपनिषद गावा।।
संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी।।
आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं।।
सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया।।
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही।।
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा।।
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा । भयहु रोषु रन रावनु मारा।।
दो0-प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि।।46।।