(श्वेतवाराह कल्प का एक दिन ) स्थान :सरौंहां
सूचना : डा अमित गुप्त जी, राहुल मिठास जी और प्रदीप जी (सभी 1989बैच ) की सहायता से आचार्य जी का गांव
संबन्धी समस्या के कारण उत्पन्न हुआ मानसिक बोझ उतरा l
मूल विषय : विवेक चूडामणि चिन्तन और भाषा की दृष्टि से क्लिष्ट है जब कि उपनिषद् ऐसे नहीं हैं | युग भारती की प्रार्थना के प्रथम छन्द -
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।
की आचार्य जी ने बहुत अच्छी व्याख्या की अन्त में पिता की छत्रछाया से वंचित संत ज्ञानेश्वर अपने भाईबहनों निवृत्तिनाथ, सोपान और मुक्ताबाई) के साथ अपमान के कठोर आघात सहते हुए 'शुद्धिपत्र' की प्राप्ति के लिये उस समय के सुप्रसिद्ध धर्मक्षेत्र पैठन में जा पहुँचे। किम्वदंती प्रसिद्ध है : संत ज्ञानेश्वर जी ने यहाँ उनका उपहास उड़ा रहे ब्राह्मणों के समक्ष भैंसे के मुख से वेदोच्चारण कराया था। अभिश्वैत्य वागृषभ श्री ओमशङ्कर त्रिपाठी जी द्वारा प्रोक्त उद्बोधनों के श्रवण हेतु अभिगृध्न श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत है |