अभिविश्रुत विद्वान आचार्य श्री ओम शङ्कर त्रिपाठीजी द्वारा उक्त इन प्रातःकालीन प्रतीक्ष्य उद्बोधनों का सातत्य वर्णनातीत
है l हमारी ज्ञानाग्नि दग्ध हो, हम शौर्य -संयुत अध्यात्म में रत हों, हमारा राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व हो -इन उद्बोधनों में ये उद्देश्य निहित हैं l इसी क्रम में प्रस्तुत है आज दिनांक 23-08-2021 का उद्बोधन जिसमें औपनिषदिक चर्चा सांसारिकता के साथ संस्पर्श कर रही है l आचार्य जी ने उच्च कोटि के दार्शनिक ग्रंथ कामायनी और कबीर के उदाहरण दिये l आचार्य जी ने कहा कि अपनी व्याकुलता का शमन आप स्वयं कर लेते हैं तो आप बहुतों से अच्छे हैं l स्वाध्याय का धन आपको शक्ति प्रदान करता है l
केनोपनिषद् की प्रार्थना
आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक् प्राणश्चक्षु... का अर्थ बताया कठोपनिषद् में ऋषि उद्दालक की कथा आदि आचार्य जी आगे कभी बतायेंगे सुहृद् प्रहृष्टात्मन् आचार्य श्री ओम शङ्कर त्रिपाठी जी प्रात्यहिक पावन इष्टापूर्त से हम लोगों का मार्गदर्शन करते चले आ रहे हैं l सद्विचारों से प्रपूरित ये उद्बोधन मात्र श्रवण हेतु नहीं हैं l इन उद्बोधनों की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब उनकी शिक्षा का प्रसञ्जन हो और आप सम्प्रश्न भी करें l