*मानव जीवन जीने के लिए अनेक रीतियों - रीतियों का पालन करना बहुत ही आवश्यक है | जो मनुष्य नीति से विमुख होकर चलने का प्रयास करता समाज उससे विमुख हो जाता है | समाज में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं एक तो अपने ज्ञान - ध्यान के कारण विद्वान कहे जाते हैं और दूसरे अल्पज्ञ | अल्पज्ञ सदैव जिज्ञासु रहते हुए व
*सनातन साहित्यों में , शास्त्रों में यही बताया जाता है कि आत्मा अजर , अमर , अविनाशी है | अजर अमर होने के बाद भी यह शाश्वत सत्य है कि आत्मा जब भी इस धराधाम पर कोई भी शरीर धारण करती है तो बिना माँ के सहयोग के बिना एक पल भी उसका विकास सम्भव नहीं हो पाता | यदि माँ रूपी महान आत्मा नव शरीर धारण करने वाली
*संसार में मनुष्य अनेकानेक रिश्ते बनाता है | कुछ रिश्ते तो मनुष्य को जन्म से ही मिलते हैं परंतु अनेक रिश्ते वह समाज में रहकर अपने व्यवहार से बनाता है | इन रिश्तों के बनने का मुख्य कारण होती हैं मनुष्य भावनायें | यदि हृदय में भावना न हो तो मनुष्य किसी रिश्ते को न तो बना पाता है और यदि बन भी गये तो भा
*भगवान श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला में एक रहस्य तो छुपा ही है साथ ही आम जनमानस के लिए एक संदेश भी उनकी लीला के माध्यम से मिलता है | जैसा कि ग्रंथों के माध्यम से यह बताया जाता है कि पूर्व जन्मोक्त कर्मों के आधार पर गोप ग्वाल या राक्षस बने प्राणियों का उद्धार भगवान ने "कृष्णावतार" में किया था ! इसी क्
*आदिकाल से ही समाज व देश के विकास में युवाओं का अप्रतिम योगदान रहा है | समय समय पर सामाजिक बुराईयों का अन्त करने का बीड़ा युवाओं ने ही युठाया है | अपनी युवावस्था में ही मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम ने ताड़कादि का वध तो किया साथ वन को जाकर रावण आदि दुर्दांत निशाचरों का वध करके विकृत होती जा रही संस्कृत
*इस सकल सृष्टि में अनेकों प्राणियों के मध्य मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसमें कुछ विशेष विशेषतायें हैं जो कि अन्य प्राणियों में नहीं मिलती हैं | मनुष्य की तीन विशेष मौलिक विशेषतायें हैं :- विचार , वचन एवं व्यवहार | किसी अन्य प्राणी की अपेक्षा किसी भी विषय पर विचार करने की जो क्षमता है वह अन्य में नहीं
*इस धरा धाम पर आदिकाल से लेकर वर्तमान तक अनेक शक्तिसम्पन्न विभूतियां अवतरित हुई हैं | जिनकी गणना कर पाना शायद सम्भव नहीं है | इन शक्तिसम्पन्न विभूतियों को प्राप्त शक्ति का स्रोत क्या रहा होगा , यदि इस पर विचार किया जाय तो परिणाम यही निकलेगा कि संसार भर उपस्थित सभी प्रकार की शक्तियों का स्रोत है -- ज
*सनातन काल से हमारे समाज के सृजन में परिवार के बुजुर्गों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है | हमारे ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ बुजुर्ग सदैव से हमारे मार्गदर्शक रहे हैं चाहे वे शिक्षित रहे हों या अशिक्षित | बुजुर्ग यदि अशिक्षित भी रहे हों तब भी उनके पास अपने जीवन के खट्टे - मीठे इतने अनुभव होते हैं कि वे उन अनुभ
*सनातनकाल से इस धराधाम पर देवताओं के साथ दैत्यों का भी प्रादुर्भाव होता रहा है | और समय समय पर दानवों का वध देव पुरुषों / अवतारी पुरुषों के द्वारा होता रहा है | चाहे सतयुग रहा हो या त्रेता या फिर द्वापर इन सभी युगों में दैत्यों का तांडव हुआ है और इन तांडवों का केन्द्र रही है नारी | जिसने भी प्रकृतिस
*ईश्वर ने सृष्टि की सुंदर रचना की, जीवों को उत्पन्न किया | फिर नर-नारी का जोड़ा बनाकर सृष्टि को मैथुनी सृष्टि में परिवर्तित किया | सदैव से पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी समय समय पर उपेक्षा का शिकार होती रही है | और इस समाज को पुरुषप्रधान समाज की संज्ञा दी जाती रही है | जबकि यह न तो सत्य
*इस धरती पर मनुष्य का प्रसन्न होना एक मानसिक दशा है | प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए धन - ऐश्वर्य का होना आवश्यक नहीं है | प्राय: देखा जाता है कि मध्यमवर्गीय लोग धनी लोगों से कहीं अधिक प्रसन्न रहते हैं , अपने परिवार व मित्रों के बीच उनके खुशी के ठहाके सुने जा सकते हैं | प्रसन्न रहने का रहस्य यही है क
*मानव जीवन में गुरु का कितना महत्त्व है यह आज किसी से छुपा नहीं है | सनातन काल से गुरुसत्ता ने शिष्यों का परिमार्जन करके उन्हें उच्चकोटि का विद्वान बनाया है | शिष्यों ने भी गुरु परम्परा का निर्वाह करते हुए धर्मध्वजा फहराने का कार्य किया है | इतिहास में अनेकों कथायें मिलती हैं जहाँ परिवार / समाज से उ
*इस संसार में समाज के प्रमुख स्तम्भ स्त्री और पुरुष हैं | स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्बंध पति और पत्नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्तानोत्पत्ति होती है और परिवार बनता है | कई परिवार को मिलाकर समाज और उस समाज का एक मुखिया होता था जिसके कुशल नेतृत्व में वह समाज विकास करता जाता था | इस विकास
*इस संसार में समाज के प्रमुख स्तम्भ स्त्री और पुरुष हैं | स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्बंध पति और पत्नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्तानोत्पत्ति होती है और परिवार बनता है | कई परिवार को मिलाकर समाज और उस समाज का एक मुखिया होता था जिसके कुशल नेतृत्व में वह समाज विकास करता जाता था | इस विकास के
*सनातन धर्म में त्यौहारों की कमी नहीं है | नित्य नये त्यौहार यहाँ सामाजिक एवं धार्मिक समसरता बिखेरते रहते हैं | ज्यादातर व्रत स्त्रियों के द्वारा ही किये जाते हैं | कभी भाई के लिए , कभी पति के लिए तो कभी पुत्रों के लिए | इसी क्रम में आज भाद्रपद कृष्णपक्ष की षष्ठी (छठ) को भगवान श्री कृष्णचन्द्र जी के
*संसार में मनुष्य एक अलौकिक प्राणी है | मनुष्य ने वैसे तो आदिकाल से लेकर वर्तमान तक अनेकों प्रकार के अस्त्र - शस्त्रों का आविष्कार करके अपने कार्य सम्पन्न किये हैं | परंतु मनुष्य का सबसे बड़ा अस्त्र होता है उसका विवेक एवं बुद्धि | इस अस्त्र के होने पर मनुष्य कभी परास्त नहीं हो सकता परंतु आवश्यकता हो
*सनातन वैदिक धर्म ने मानव मात्र को सुचारु रूप से जीवन जीने के लिए कुछ नियम बनाये थे | यह अलग बात है कि समय के साथ आज अनेक धर्म - सम्प्रदायों का प्रचलन हो गया है , और सनातन धर्म मात्र हिन्दू धर्म को कहा जाने लगा है | सनातन धर्म जीवन के प्रत्येक मोड़ पर मनुष्यों के दिव्य संस्कारों के साथ मिलता है | जी
*इस धराधाम पर भगवान के अनेकों अवतार हुए हैं , इन अवतारों में मुख्य एवं प्रचलित श्री राम एवं श्री कृष्णावतार माना जाता है | भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त पूर्णावतार लेकर इस धराधाम पर अवतीर्ण होकर अनेकों लीलायें करते हुए भी योगेश्वर कहलाये | भगवान श्री कृष्ण के पूर्णावतार का रहस्य समझने का प्रय
*यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत ! अभियुत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ! परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ! धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे - युगे !! भगवान श्री कृष्ण एक अद्भुत , अलौकिक दिव्य जीवन चरित्र | जो सभी अवतारों में एक ऐसे अवतार थे जिन्होंने यह घोषणा की कि मैं परमात्मा हूँ
*संसार में मनुष्य ने अपने दिव्य गुणों के कारण सदैव लोगों के हृदयों में राज करता आया है | मनुष्य के इन्हीं दिव्य गुणोंं में एक दिव्य गुण है , जिसे परोपकार कहा जाता है | परोपकार एक महान दैवीय आध्यात्मिक गुण है | यह कुछ और नहीं वरन् देवत्व की अभिव्यक्ति है | साथ ही यह करुणा , प्रेम , पवित्रता एवं संवेद