*इस सृष्टि में चौरासी लाख योनियां बताई गयी हैं जिनमें सबका सिरमौर बनी मानवयोनि | वैसे तो मनुष्य का जन्म ही एक जिज्ञासा है इसके अतिरिक्त मनुष्य का जन्म जीवनचक्र से मुक्ति पाने का उपाय जानने के लिए होता अर्थात यह कहा जा सकता है कि मनुष्य का जन्म जिज्ञासा शांत करने के लिए होता है , परंतु मनुष्य जिज्ञास
*सनातन संस्कृति इतनी मनोहारी है कि समय समय पर आपसी प्रेम सौहार्द्र को बढाने वाले त्यौहार ही इसकी विशिष्टता रही है | शायद ही कोई ऐसा महीना हो जिसमें कि कोई त्यौहार न हो , इन त्यौहारों के माध्यम से समाज , देश एवं परिवार के बिछड़े तथा अपनों से दूर रह रहे कुटुंबियों को एक दूसरे से मिलने का अवसर मिलता है
*राखी के बंधन का जीवन में बहुत महत्त्व है | राखी बाँधने का अर्थ क्या हुआ इस पर भी विचार कर लिया जाय कि राखी का अर्थ है रक्षण करने वाला | तो आखिर यह रक्षा कि जिम्मेदारी है किसके ऊपर /? अनेक प्रबुद्धजनों से वार्ता का सार एवं पुराणों एवं वैदिक अनुष्ठानों से अब तक प्राप्त ज्ञान के आधार पर यही कह सकते है
*मानव शरीर को गोस्वामी तुलसीदास जी ने साधना का धाम बताते हुए लिखा है :--- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात :- चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जिसे पाकर जीव लोक - परलोक दोनों ही सुधार सकता है | यहाँ तुलसी बाबा ने जो साधन लिखा है वह साधन आखिर क्या ह
*हमारा देश भारत विविधताओं का देश है , इसकी पहचान है इसके त्यौहार | कुछ राष्ट्रीय त्यौहार हैं तो कुछ धार्मिक त्यौहार | इनके अतिरिक्त कुछ आंचलिक त्यौहार भी कुछ क्षेत्र विशेष में मनाये जाते हैं | त्यौहार चाहे राष्ट्रीय हों , धार्मिक हों या फिर आंचलिक इन सभी त्यौहारों की एक विशेषता है कि ये सभी त्यौहार
*मानव शरीर को गोस्वामी तुलसीदास जी ने साधना का धाम बताते हुए लिखा है :--- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात :- चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जिसे पाकर जीव लोक - परलोक दोनों ही सुधार सकता है | यहाँ तुलसी बाबा ने जो साधन लिखा है वह साधन आखिर क्या ह
*हमारी भारतीय संस्कृति सदैव से ग्राह्य रही है | हमारे यहाँ आदिकाल से ही प्रणाम एवं अभिवादन की परम्परा का वर्णन हमारे शास्त्रों में सर्वत्र मिलता है | कोई भी मनुष्य जब प्रणाम के भाव से अपने बड़ों के समक्ष जाता है तो वह प्रणीत हो जाता है | प्रणीत का अर्थ है :- विनीत होना , नम्र होना या किसी वरिष्ठ के
*इस संसार में मनुष्य को शक्तिशाली बनाने के अनेक साधन हैं परन्तु मुख्यरूप से मनुष्य को तीन प्रकार की शक्तियों के माध्यम से शक्तिशाली माना जाता है ! वह शक्तियां है मानसिक , शारीरिक एवं आध्यात्मिक | इन तीनों में भी सर्वश्रेष्ठ है मानसिक शक्ति | प्रत्येक मनुष्य के तन के साथ - साथ मन का भी स्वस्थ होना पर
*धरती पर मनुष्य के विकास में मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम प्रमुख था | तब मनुष्य एक ही धर्म जानता था :- "मानव धर्म" | एक दूसरे के सुख - दुख समाज के सभी लोग सहभागिता करते थे | किसी गाँव या कबीले में यदि किसी एक व्यक्ति के यहाँ कोई उत्सव होता था तो वह पूरे गाँ का उत्सव बन जाता था , और यदि किसी के यह
आधुनिक समाजआधुनिक समाजनमश्कार मैं हू आपकी चहिती समायरा ।आज कल लोगों कि पास समय का बहोत अभाव है !किसी को ऑफ़िस की जल्दी है तो किसी को अपनी मोहबत से मिलने की पर इस सब में गोर करने वाली बात यह है ।इतनी जल्दबाज़ी के बाद भी भी इचाए है की समाप्त होने का नाम नहीं लेती है।इस सब
समाज बदल रहा है, इसलिए हम बदल रहे है. समाज नहीं बदलता , बदलते हमारे ख्यालात है, जिससे बदलता समाज है. समाज में हो रहे बुराइयों को हम बदलते समाज पर दोष देकर अपना पल्ला झाड़ लेते है, जबकि ये समाज बदला है तो वो हमारे ख्यालात से बदल
*ईश्वर की अनुपम कृति है मानव | अनेक गुणों का समावेश करके ईश्वर ने मनुष्य की रचना की है | इस धराधाम पर आकर इन्हीं गुणों के माध्य से मनुष्य ने अपना नाम इतिहास पुराणों में स्वर्णाक्षरों में लिखाया है | वैसे तो मनुष्य के सभी गुणों का बखान कर पाना तो सम्भव नहीं है परंतु जो गुण मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने
*पुण्यभूमि भारत की संस्कृति एवं संस्कार सम्पूर्ण विश्व के लिए आदर्श प्रस्तुत करते आये है | ऐसी दिव्य संस्कृति एवं महान संस्कार विश्व के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलते | हमारे संस्कार हमें यही शिक्षा देते हैं कि मनुष्य चाहे जितना उच्च पदस्थ हो परंतु उसका भाव सदैव छोटा ही बने रहने का होना चाहिए |
*संसार में मनुष्य के लिए जितना महत्त्व परिवार व सगे - सम्बन्धियों का है उससे कहीं अधिक महत्त्व एक मित्र है | बिना मित्र बनाये न तो कोई रह पाया है और न ही रह पाना सम्भव है | मित्रता का जीवन में एक अलग ही स्थान है | मित्र बना लेना तो बहुत ही आसान है परंतु मित्रता को स्थिर रखना और जीवित रखना, सदा-सदा क
*इस धराधाम पर भाँति भाँति के मनुष्य देखने को मिलते हैं कोई जन्म से राजकुमार होता है तो कोई निर्धन | कुछ लोग इसे ईश्वर का अन्याय भी कहते हैं , जबकि यह ईश्वर का अन्याय नहीं बल्कि मनुष्य के कर्मों का फल होता है | जो जैसा कर्म करता है उसका पुनर्जन्म उसी प्रकार होता है | हमारे शास्त्र बताते हैं कि मृत्
*आज तक इस सृष्टि में अनेकानेक ऋषि - महर्षि / विद्वान हुए हैं जिनके मारिगदर्शन में यह सृष्टि गतिमान हुई | आज हमारे पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं इन सबका श्रेय हमारे पूर्व के विद्वानों को ही जाता है | यह उन सभी विद्वानों की विद्वता ही है जो कि हमें जीवन के प्रत्येक विषय का ज्ञान उपलब्ध कराने वाले ग्रंथ
*इस पृथ्वी पर सकल सृष्टि में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | मनुष्य का जीवन उसकी श्वांसों पर निर्भर है , जब तक श्वांस चल रही है तब तक उसे जीवित माना जाता है और श्वांस बन्द होते ही वह मृतक घोषित कर दिया जाता है | क्या श्वांसे बन्द होने पर ही मनुष्य की मृत्यु होती है ????? शायद नहीं | कुछ मनुष्य ज
*मानव जीवन इतना विचित्र है कि इसे जान पाना शायद सबके लिए सम्भव नहीं है | यहाँ अधिकतर मनुष्य सिर्फ पाना चाहते हैं , परंतु देने वाले कुछेक ही हैं | वैसे तो मनुष्य को जीवन जीने के लिए प्राकृतिक - भौतिक संसाधन जितने मिल जायं कम ही हैं , परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि मनुष्य जीवन में मन
*परमात्मा ने बड़े विचित्र संसार की रचना की है | इस संसार का नियम ऐसा है कि कुछ बनने के लिए , कुछ पाने के लिए स्वयं को , स्वयं के अहम को मिटाना पड़ता है | विनाश से ही सृजन होता है | नित्य मनुष्य कुछ न कुछ प्राप्त करता रहता है परंतु पुरुष से महापुरुष बनने के लिए स्वयं को मिटाना पड़ता है | स्वयं को मिट
*चौरासी लाख योनियों में मनुष्य यदि सर्वश्रेष्ठ बना है तो उसका कारण है कि प्रारम्भ से ही अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए विकास करता रहा है | मानव जीवन में मुख्य है कर्तव्यों का सकारात्मकता से पालन करना | यदि कर्तव्य पालन में अपनी भावनाओं , इच्छाओं का दमन भी करना पड़े तो नि:संकोच कर देना चाहिए , ऐसा क