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*धरती पर पुण्यभूमि भारत में जन्म लेने के बाद मनुष्य ने उत्तरोत्तर - निरन्तर विकास करते हुए एक आदर्श प्रस्तुत किया है | आदिकाल से हमारी संस्कृति हमारे संस्कार ही हमारी पहचान रहे हैं | बालक के जन्म लेके के पहले से लेकर मृत्यु होने के एक वर्ष बाद तक संस्कारों की एक लम्बी श्रृंखला यहाँ रही है | इन्हीं स

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*मानव जीवन इतना विचित्र है कि इसमें मनुष्य को अनेक अनुभव होते रहते हैं | मनुष्य की मन:स्थिति ऐसी होती है कि वह क्षण भर दु:खी और दूसरे क्षण सुखी हो जाता है | विचित्र बात यह है कि मनुष्य दु:खी हो जाता है तो सारा दोष दूसरों को या फिर परमात्मा को दे देता है और सुखी होने पर सारा श्रेय स्वयं ले लेता है |

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*सनातन धर्म के ग्रंथ सदैव हमारे मार्गदर्शक रहे हैं | इन्हीं ग्रंथों में महाराज मनु द्वारा रचित "मनुस्मृति" में धर्म की विस्तृत व्याख्या करते हुए धर्म के दस लक्षण बताये हैं | यद्यपि ये दसों लक्षण महत्वपूर्ण है परंतु उसमें से एक विशेष लक्षण है क्षमा | क्षमा मांग लेने या क्षमा कर देने से मानव के जीवन क

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*प्राचीनकाल से ही सनातन धर्म के साधु - संतों , ऋषियों - महर्षियों ने समाज के उत्थान के लिए सदैव प्रयास किया है | इस क्रम में कइयों ने तो स्वयं के प्राणों की आहुति भी दे दी | कुछ लोग समझते हैं कि घर छोड़ कर जंगल में रहने वाला ही साधप हो सकता है | किसी संत या साधु की चर्चा आते ही आँखों के आगे एक गेरुव

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*मानव जीवन एक संघर्ष है | इसमें उतार चढाव लगे रहते हैं | जीवन में सफलता का मूलमंत्र है :- साहस | जिसके पास साहस है वह कभी असफल नहीं होता है | साहस के ही बल पर संसार में मनुष्य ने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया है | कहते हैं कि ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जिसके पास साहस होता है | इतिहास में उन्हीं क

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*मनुष्य का स्वभाव है कि जिस काम को वह एक बार कर लेता है उसी काम को वह पुन: करना चाहता है | जो विचार एक बार उसके मन में आ जाता है वही विचार वह अपने मन में बार - बार लाता रहता है | अपने अनुभवों की आवृत्ति से उसे तृप्ति मिलती है | इस प्रकार जब कोई भाव चित्त में ठहर जाता है और मनुष्य द्वारा उसे बार - ब

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*मानव जीवन बहुत रंग बिरंगा है ! इस जीवन में मनुष्य तरह तरह के व्यवहार इस संसार में करता रहता है | इन्हीं में एक है छल करना या धोखा देना | मनुष्य किसी को धोखे में रखकर बहुत प्रसन्न होता रहता है | जबकि धोखा देने या छल करने वालों का क्या परिणाम होता है इसे लगभग सभी जानते हैं | मनुष्य यह सोंचकर प्रसन्न

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! मनुष्य इस सृष्टि का मुकुटमणि है | मनुष्य के लिए यदि अद्भुत , अलौकिक , अद्विती़य , अविस्मरणीय प्राणी कहा जाय तो ये उपमायें भी छोटी ही प्रतीत होती हैं | मनुष्य ने एक ओर जहाँ अपने श्रेष्ठ कार्यों से स्वयं को स्थापित किया है वहीं कुछ नकारात्मक कार्य मनुष्य के लिए घातक भी स

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सूझ बूझ के साथ किया है | इस सम्पूर्ण सृष्टि का कण - कण परमात्मा द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन करते हुए अपने - अपने क्रिया - कलापों को गतिमान बनाये हुए हैं | बिना नियम के सृष्टि चलायमान नहीं हो सकती है | सूर्य , चन्द्र , वायु आद

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! मानव जीवन में दो चीजे मनुष्य को प्रभावित करती हैं पहला स्वार्थ और दूसरा परमार्थ | जहाँ स्वार्थ का मतलब हुआ स्व + अर्थ अर्थात स्वयं का हित , वहीं परमार्थ का मतलब हुआ परम + अर्थ अर्थात परमअर्थ | परमअर्थ के विषय में हमारे मनीषी बताते हैं कि जो आत्मा के हितार्थ , आत्मा के

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!! भगवत्कृपा हि के वलम् !! *यह संसार विचित्रताओं से भरा पड़ा है | यहाँ भाँति - भाँति के विचित्र जीव देखने को मिलते हैं | कुछ जीव तो ऐसे - ऐसे कभी देखने को मिल जाते हैं कि अपनी आँखों पर भी विश्वास नहीं होता | और मनुष्य विचार करने लगता है कि :- परमात्मा की सृष्टि भी अजब - गजब है | हमारे वैज्ञानि

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *हमारे मनीषियों ने मनुष्य के षडरिपुओं का वर्णन किया है | जिसमें से एक अहंकार भी है | अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता देखा गया है | इतिहास गवाह है कि अहंकारी चाहे जितने विशाल साम्राज्य का अधिपति रहा हो , चाहे वह वेद - वेदान्तों में पारंगत कियों न रहा हो उसका विनाश अ

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सूझ बूझ के साथ किया है | इस सम्पूर्ण सृष्टि का कण - कण परमात्मा द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन करते हुए अपने - अपने क्रिया - कलापों को गतिमान बनाये हुए हैं | बिना नियम के सृष्टि चलायमान नहीं हो सकती है | सूर्य , चन्द्र , वायु आद

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस सकल ब्रह्माण्ड में चौरासी लाख योनियों का वर्णन मिलता है | इन चौरासी लाख योनियों के चार प्रकार बताये गये हैं :- जरायुज, स्वेदज, अण्डज और उद्भिज | जिसमें मनुष्य शरीर एक श्रेष्ठतम् और सर्वोत्तम आकृति है | चौरासी लाख आकृतियों में मनुष्य रूप आकृति के समान अन्य कोई आकृ

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *यह सकल सृष्टि ऊर्जाओं का समन्वय स्रोत है | इनहीं ऊर्जा के स्रोतों में मुख्य है ऊर्जा का स्रोत है सूर्य | सूर्य में असीम ऊर्जा है इसी ऊर्जा से संसार के सभी कार्य सम्पादित होते हैं | हम सभी नित्य ही सूर्य का साक्षात्कार करते हैं परंतु उसके क्रिया कलाप पर शायद कभी ध्यान

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में भाँति भाँति प्रकार के मनुष्य समाज में रहते हैं जिनकी प्रवृत्तियां भी भिन्न ही होती हैं ! कुछ लोग सद्प्रवृत्तियों के होते हैं जो सदैव प्रेम , सौहार्द्र , एवं लोककल्याण में प्रयासरत होते हैं , तो कुछ दुष्प्रवृत्ति के होते हैं जो सदैव विध्वंसक , ईर्ष्या - द्

!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में जन्म लेकर प्रत्येक मनुष्य संसार में उपलब्ध सभी संसाधनों को प्राप्त करने की इच्छा मन में पाले रहता है | और जब वे संसाधन नहीं प्राप्त हो पाते तो मनुष्य को असंतोष होता है | किसी भी विषय पर असंतोष हो जाना मनुष्य के लिए घातक है | इसके विपरीत हर परिस्थिति में स

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!*मनुष्य के जीवन में यदि देखा जाय तो संसार में सब कुछ महत्त्वपूर्ण है ! परंतु इन सभी सबसे अति महत्तवपूर्ण शिक्षा | बिना शिक्षा प्राप्त किये मनुष्य को स्वयं , समाज एवं विशेषकर मनुष्यता का बोध नहीं हो सकता | एक शिक्षित मनुष्य ही अपने भले बुरे के बारे में सही ढंग से सोच सकता

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस समस्त संसार में किसी भी देश का भविष्य युवाओं का कहा जाता है | भारत देश में वैदिक काल से लेकर कुछ दिन पूर्व तक युवाओं ने अपने कार्यों से देश को गौरवान्वित किया है | जहाँ त्रेतायुग में युवा श्री राम ने पिता के वचन का पालन करने के लिए पहले विश्वामित्र जी के साथ वनयात्र

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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस धराधाम पर जबसे मनुष्य की सृष्टि हुई तब से लेकर आज तक मनुष्य अनवरत संघर्षशील ही रहा है | अपनी इसी संघर्षशीलता के बल पर मनुष्य ने असम्भव को भी सम्भव बनाकर दिखाया है | इस संसार में विद्यमान शायद कोई भी ऐसा संसाधन नहीं बचा है जिसका उपयोग मनुष्य ने न किया हो | हिंसक जान

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