करते हैं बैठ चर्चा, खाली ये जब भी होते, कोई काम इनको करते मैने कभी न देखा. ................................................... वो उसके साथ आती, उसके ही साथ जाती, गर्दन उठा घुमाकर बस इतना सबने देखा. .............................................
भारतीय परम्पराओं के मानने वाले हैं ,ये सदियों से चली आ रही रूढ़ियों में विश्वास करते हैं और अपने को लाख परेशानी होने के बावजूद उन्हें निभाते हैं ये सब पुराने बातें हैं क्योंकि अब भारतीय तरक्की कर रहे हैं और उस तरक्की का जो असर हमारी परम्पराओं के सुन्दर स्वरुप पर पड़ र
मंडप भी सजा ,शहनाई बजी ,आई वहां बारात भी ,मेहँदी भी रची ,ढोलक भी बजी ,फिर भी लुट गए अरमान सभी .समधी बात मेरी सुन लो ,अपने कानों को खोल के ,होगी जयमाल ,होंगे फेरे ,जब दोगे तिजोरी खोल के .आंसू भी बहे ,पैर भी पकड़े ,पर दिल पत्थर था समधी का ,पगड़ी भी रख दी पैरों में ,पर दिल न पिघला समधी का .सुन लो समधी
दूसरे हृदयघात के बाद आराम से उठने के बाद उद्योगपति तुषार नाथ का व्यक्तित्व बदल गया था। पहले व्यापार पर केंद्रित उनका नजरिया अब किसी छोटे बच्चे जैसा हो गया था। छोटी-छोटी बातों पर चिढ जाना, उम्र के हिसाब से गलत खान-पान और व्यापार में हो रहे घाटे पर ध्यान ना देना अब उनके लिए आम हो गया था। परिवार और परि
 'साहब !मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले
़भारत के प्रमुख देहबाजारऔरदस्तूरविषय पर एकपुस्तक प्रकाशित की जा रही है आपके पास कोई सूचना या जानकारी हो तो मेल करें : anil69790@gmail.com
विनय के घर आज हाहाकार मचा था .विनय के पिता का कल रात ही लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया .विनय के पिता चलने फिरने में कठिनाई अनुभव करते थे .सब जानते थे कि वे बेचारे किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहे थे और सभी अन्दर ही अन्दर मौत की असली वजह भी जानते थे किन्तु अपने मन को समझाने के लिए सभी बीमारी को ही
रावण का पुत्र वीर योद्धा मेघनाथ यह जान गया था की श्रीराम
एक सरकारी दफ्तर में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, सौरभ घुसता है। सौरभ अपना झोला लेकर अंदर आता है और अपने विभाग से जुड़े एक बाबू (क्लर्क) के बारे में पूछता है। उसकी डेस्क पर जाकर वो अपना दुखड़ा रखता है।"सर मेरा कई सालों का ट्रेवल अलाउंस, पेट्रोल अलाउंस, नच बलिये अलाउंस कुछ नहीं आया है, अब आप ही कुछ कीजिये
सभ्यता की सीढ़ियाँ सहेजता समाज नैतिकता के अदृश्य बोझ से लड़खड़ा रहा है निजता की परिधि हम से मैं तक सिकुड़ चुकी है. उन्नत उजालों में दिखता नहीं आदमियत का भाव स्वार्थ की अँधेरी रात में अपनत्व का
" कहने को हैं बहुत कुछ, गर कहने पर आयें,फट जायेगा कलेजा, गर दास्ताने हकीकत सुनायें." सर्दियों की शाम, 7.30 का वक्त, अचानक दो स्कूटी तीन मोटर साइकिल आकर रूकती हैं, दस बारह लड़के दुकान का शटर गिरा रहे एक लड़के को घेर लेते हैं और लड़के के
कितने चेहरो में एक वो चेहरा था...नशे में एक औरत ने कभी श्मशान का पता पूछा था...आँखों की रौनक जाने कहाँ दे आई वो,लड़खड़ाकर भी ठीक होने के जतन कर रही थी जो। किस गम को शराब में गला रही वो,आँसू लिए मुस्कुरा रही थी जो।अपनी शिकन देखने से डरता हूँ,इस बेचारी को किस हक़ से समझाऊं?झूठे रोष में उसे झिड़क दिया,नज़रे
कल अचानक ही शहर-भ्रमण करना पड़ा. बस के लिए दिन वाला पास बनवा लिया था. एक छोटी सी गलती या यूँ कहें हड़बड़ी से गलत बस में बैठ गया, जो पहुँचती तो वहीँ थी, पर बहुत ही घूम-फिरके. ये हड़बड़ी बड़ी ही बेतुकी थी, क्योंकि दरअसल मुझे कोई खास जल्दी थी नहीं. सो मै भी बस में बैठा रहा. बहुत दिनों बाद मुझे एक प्रिय काम क
समाचार पढ़ा सरकारी अस्पताल में एक नवजात को नर्स ने हीटर के पास सुलाया. राजस्थान से आयी इस खबर ने अंतर्मन को झकझोर दिया नवजात शिशु के परिजनों से नर्स को इनाम न मिला
कुरुक्षेत्र के लाड़ले शहीद मनदीप (जिनका सिर पाकिस्तान काट ले गया और हम... ), शहीद नितिन सुभाष और
ऐसे कलुषित समाज में लेकर जन्मवर्ण कुल सब मेरा श्याम हो गया ।बड़ी दूषित है सोचकर्म भी काले हैंगहन तम मेंअस्तित्व इनका घुल गया ।देखकर यह समाजहोती है घुटन आज ।कैसा है समाज इसे आती नहीं लाज ?नर्क से निकाल करदुनियाँ में जो लायी ।शून्य मन में ज्ञान कीजिसने ज्योति जलायी ।जिसका शोणित पीकरजीवन मिलता है ।जिसक
गुप्त रहस्य छिपाये रखिएन दूसरों से इतने खुल जाइये कि दूसरों को आपमें कुछ आकर्षण ही नहीं रहे, न इतने दूर ही रहिये कि लोग आपको मिथ्या अभिमानी या घमंडी समझें। मध्य मार्ग उचित है। दूसरों के यहाँ जाइये, मिलिए किन्तु अपनी गुप्त बातें अपने तक ही सीमित रखिए। “आपके पास बहुत सी उपयोगी मंत्रणायें, गुप्त भेद, ज