!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *हमारे मनीषियों ने मनुष्य के षडरिपुओं का वर्णन किया है | जिसमें से एक अहंकार भी है | अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता देखा गया है | इतिहास गवाह है कि अहंकारी चाहे जितने विशाल साम्राज्य का अधिपति रहा हो , चाहे वह वेद - वेदान्तों में पारंगत कियों न रहा हो उसका विनाश अवश्य हुआ है | विनाश तो इस संसार में एक दिन सबका ही होना है परंतु कुछ का विनाश इस प्रकार होता है कि वह इतिहास बन जाता है | हमारे पुराणों में अनेक कथायें अहंकारियों की जीवनगाथा गाती हुई दिखाई पड़ती हैं | रावण , कंस , महिषासुर आदि जिन्हें उनके कर्मों के कारण राक्षस कहा गया है अपने अहंकार के लिए प्रसिद्ध थे | अहंकार के ही समानार्थक शब्द है स्वाभिमान | आखिर अहंकार और स्वाभिमान का एक ही अर्थ क्यों निकलता है | सबसे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि अहंकार है क्या ?? अहंकार को सबसे बड़ा दुर्गुण माना गया है | अहंकारी अपने बल, बुद्धि, राज्य, भाषा, संस्कृति और अपनी प्रत्येक चीज को पर "घमंड" करता है, उन्हें "श्रेष्ठतम" समझता है और अन्यों की तुच्छ या हीन | इस कारण वह आक्रान्ता (आक्रामक) हो जाता है | वह दूसरों पर विचारों या अस्त्रशस्त्र से हमला करता रहता है, अपना वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा करता है | इस क्रम में वह
धर्म (सत्य एवं न्याय) की भी अवहेलना करता रहता है | वह "एको$हं द्वितीयो नास्ति" की भावना से ग्रसित होकर अपने क्रिया कलाप करने लगता है | एवं अन्त में दुर्गति को प्राप्त हो जाता है | ऐसे लोगों का सम्मान (भयवश) उनके मुंह पर तो खूब होता है परंतु पीठ पीछे लोग उन्हें दुर्वचन ही बोला करते हैं | इसके विपरीत स्वाभिमानी व्यक्ति अपने बल, बुद्धि, राज्य, भाषा, संस्कृति और अपनी प्रत्येक चीज पर "गर्व" करता है, उन्हें "श्रेष्ठ" समझता है (लेकिन श्रेष्ठतम नहीं) और अन्यों की भी इन्हीं चीजों का सम्मान करता है | वह दूसरों से भी कुछ-कुछ सीखकर व सहयोग लेकर अपने से जुड़ी हर चीज को और बेहतर बनाने की सतत चेष्टा करता रहता है | वह आक्रान्ता नहीं होता, परन्तु अपने पर किये आक्रमण को सहन भी नहीं करता, समुचित प्रत्युत्तर अवश्य देता है, प्रत्येक दशा में वह धर्म (सत्य एवं न्याय) का पक्ष लेता है |* *आज के युग में स्वाभिमानी को अहंकारी कह देने की प्रथा सी चल पड़ी है | किसी की अनर्गल बात को न मानने वाला , असत्य एवं कदाचार का साथ न देने वाले को लोग अहंकारी की संज्ञा दे देते हैं | आज यदि आप किसी की बात का समर्थन नहीं करते हैं , किसी को बार बार उसकी गल्ती पर टोंकते हैं तो आप अहंकारी हो सकते हैं | पहले मनुष्य के क्रिया कलापों से , सामाज के विपरीत चलने वालों को , अपनी ही बात जबरन मनवाने वाले को लेग अहंकारी कहा करते थे परंतु अब इसकी परिभाषा बदल बदल गयी है | अब तो लोग जरा सी बात पर भी किसी को भी अहंकारी बताकर
समाज में प्रचार करने का प्रयास करने लगते हैं | वे शायद उसके स्वाभिमान को अहंकार मानने लगते हैं | ऐसे लोगों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कहना चाहता हूँ कि पहले वे अभिमान एवं स्वाभिमान में अंतर करना जान लें तब किसी पर मिथ्या दोषारोपण करें ! क्योंकि समाज में किसी का सम्मान स्थापित होने में समय लगता है परंतु अपमान होने में क्षणभर का समय पर्याप्त है | किसी के स्वाभिमान को उसका अभिमान कह देने का पिरचलन आज जोरों पर है | जहाँ एक ओर अहंकार घातक है तो वहीं स्वाभिमान परमावश्यक | मैं तो कहता हूँ कि सभी लोगों में अपने
देश ,
भाषा , संस्कृति , कुल , गोत्र एवं परिवार का स्वाभिमान होना चाहिए | यदि किसी में यह स्वाभिमान नहीं है तो वह अपना जीवन पशुवत् व्यतीत कर रहा है | अपने बच्चे की सफलता पर पिता स्वाभिमान करता है और समाज में उसकी बड़ाई करता है तो कुछ लोग कहने लगते हैं कि :- इसको अपने बच्चे पर अहंकार है ! जबकि यह अहंकार नहीं स्वाभिमान की श्रेणी में आता है | मेरा देश , मेरे देश की सेना मेरा स्वाभिमान है यदि पड़ोसी देश इसे मेरा अहंकार कहे तो कहता रहता क्योंकि यह उसकी अपनी सोंच है कि वह हमें अहंकारी मानता है |* *अहंकार सबमें होता है परंतु इसे स्वाभिमान तक ही सीमित रखना चाहिए | स्वाभिमान जब मिथ्याभिमान में परिवर्तित हो जाता है तब वह अहंकार बनकर घातक होने लगता है |*