
*धरती पर पुण्यभूमि
भारत में जन्म लेने के बाद मनुष्य ने उत्तरोत्तर - निरन्तर विकास करते हुए एक आदर्श प्रस्तुत किया है | आदिकाल से हमारी संस्कृति हमारे संस्कार ही हमारी पहचान रहे हैं | बालक के जन्म लेके के पहले से लेकर मृत्यु होने के एक वर्ष बाद तक संस्कारों की एक लम्बी श्रृंखला यहाँ रही है | इन्हीं संस्कारों के बलबूते पर भारत को विश्व का सिरमौर (विश्वगुरु) माना जाता रहा है | सनातन
धर्म में संस्कारों का विशेष महत्व है | इनका उद्देश्य शरीर, मन और मस्तिष्क की शुद्धि और उनको बलवान करना है जिससे मनुष्य
समाज में अपनी भूमिका आदर्श रूप मे निभा सके | संस्कार का अर्थ होता है-परिमार्जन-शुद्धीकरण | हमारे कार्य-व्यवहार, आचरण के पीछे हमारे संस्कार ही तो होते हैं | ये संस्कार हमें समाज का पूर्ण सदस्य बनाते हैं | एक संस्कारवान पुरुष कभी भी अनीति - अन्याय या भ्रष्टाचार नहीं कर सकता है यदि वह कभी मन के बहकावे में आकर ऐसा करना भी चाहता है तो उचित समय पर उसके संस्कार उसके मार्ग में रुकावट बनकर खड़े हो जाते हैं | संस्कार का क्या महत्व है यह जानने के लिए हमें हमारे मार्गदर्शक ग्रंथों का अवलोकन करना पड़ेगा | यदि हम अपने ग्रंथों का अवलोकन करने में असमर्थ हैं तो अपने परिवार , समाज व
देश के संस्कारों से सीखने का प्रयास करना चाहिए | हमें बताया गया है कि :- "मातृवत् परदारेषु , परद्रव्येषु लोष्ठवत्" अर्थात :- जननी सम जानहिं परनारी ! धन पराव विष ते विष भारी !! पराई स्त्री मां या बहन के समान होती है तो पराया धन लोहे के समान और सत्य तो यह है कि वह विष के समान है | यह रहे हैं हमारे सनातन संस्कार |* *आज का समाज समाज जितना पतित होता जा रहा है वह विचारणीय ही नहीं अपितु चिंतनीय भी है | आज जिस प्रकार समाज में विद्रोह , हिंसा , बलात्कार जैसे जघन्य कृत्य हो रहे हैं | कार्यालयों में जिस प्रकार खुलेआम सुविधा शुल्क के नाम पर धन उगाही हो रही है यह सोंचने पर विवश कर देता है कि आखिर ऐसा करने वाले कौन हैं ?? मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहूँगा कि ये वही लोग जिन्हें या तो उनके माता - पिता ने संस्कारित नहीं किया या फिर अपने गौरवशील इतिहास से परिचित नहीं कराया | आज के युवा यदि चोरी , डकैती , छिनैती , महिलाओं से बदसलूकी करने का कृत्य कर रहे हैं तो यह मान लिया जाना चाहिए कि उन्हें सबकुछ तो मिला परंतु वे संस्कार से वंचित रहकर पशुवत् व्यवहार कर रहे हैं | जिस प्रकार बहुत अच्था भोजन तैयार करके रख दिया जाय परंतु उसमें नमक न डाला जाय तो भोजन व्यर्थ हो जाता है उसी प्रकार उच्चकुल में जन्म लेकर सारे सुख ऐश्वर्य का भोग करने वाले मनुष्य में यदि संस्कार नहीं हैं तो उसका जीवन व्यर्थ है | आज सरकारें सारा प्रयास करने के बाद भी यह अत्याचार - भ्रष्टाचार न बन्द करवा पा रही हैं और न ही बंद करवा पायेंगी | यदि इन पापाचारों को बन्द ही करवाना है तो प्रत्येक गाँव के प्रत्येक मुहल्ले में सनातन गुरुकुल की ही भाँति एक - एक संस्कारशाला स्थापित करनी पड़ेगी | जब इन संस्कारशालाओं से परिमार्जित होकर बच्चे निकलेंगे तो यह भारत पुन: संस्कारवान भारत बन सकता है |* *सभी से अनुरोध है कि समाज का जिम्मा न लेकरके यदि अपने - अपने बच्चों को संस्कारित करने की पहल शुरु कर दी जाय तो यह कार्य बहुत ही सरलता से हो जायेगा | आईये सनातन संस्कृति की ओर लौटने का प्रयास करें |*