!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सूझ बूझ के साथ किया है | इस सम्पूर्ण सृष्टि का कण - कण परमात्मा द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन करते हुए अपने - अपने क्रिया - कलापों को गतिमान बनाये हुए हैं | बिना नियम के सृष्टि चलायमान नहीं हो सकती है | सूर्य , चन्द्र , वायु आदि यदि नियमों का उल्लंघन कर दें तो विचार कीजिए कि इस सृष्टि का क्या हाल होगा | इस संसार में प्रत्येक कार्य नियम का पालन करने से ही सम्पादित होते आये हैं | यदि किसी के द्वारा कहीं भी नियम का उल्लंघन किया जाता है तो स्थिति विध्वंसक ही होती आई है |
देश की सरकारें भी एक नियम कानून के अन्तर्गत चल रही हैं | ये सारे नियम कानून मनुष्यों की सुरक्षा - संरक्षा के लिए ही बनाये गये हैं | जहाँ इन नियमों का निर्माण किया गया वहीं इन नियमों का पालन कराने वाली ईकाईयां भी स्थापित की गयी हैं जो आम जनमामस को इन नियमों का पालन करने की सलाह देती रहती हैं | कभी - कभी नियमों का पालन न करने वालों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही भी करनी पड़ती है | प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने पर जिस तरह समय समय पर भूकम्प , तूफान आदि के रूप में परमात्मा द्वारा मनुष्यों के लिए दंड देने का विधान है | उसी प्रकार देश ,
समाज व परिवार भी नियमों के बिना नहीं चल सकते | अनादिकाल से यह क्रम चलता आ रहा है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु अपनी गति के अनुरूप चल रही है.यही कारण है कि इस संसार की व्यवस्था कभी भंग नहीं होती | व्यवस्था भंग वहां होती है, जहां कोई नियम न हो, कोई बंधन न हो, प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र और स्वच्छंद हो, लेकिन जहां व्यवस्था होती है, वहां कोई स्वच्छंदता नहीं होती | सर्वत्र नियम होता है | आज के युग में नियमों धज्जियां प्रत्येक स्थान पर उड़ती देखी जा सकती हैं | संसार की प्रथम ईकाई परिवार होता है एक परिवार का मुखिया अपने परिवार को सुगमता से चलाने के लिए नियम बनाता है | प्रत्येक परिवार / समूह / संगठन के अपने नियम होते हैं | परिवार के सदस्यों के द्वारा उन नियमों का पालन किया जाता रहा है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी का मानना है कि जब परिवार के मुखिया को अपने परिवार के सदस्यों द्वारा परिवार की मर्यादा का उल्लंघन करते हुए देखा जाता है तो उसे अपार कष्ट होता है | तब वह परिवार के सदस्यों को परिवार की मर्यादा का भान कराने का प्रयास किया जाता है , और परिवार के सदस्यों द्वारा उन मर्यादाओं को न मानने पर कुछ कड़े / दंडात्मक निर्णय भी लेने पड़ते हैं | कभी - कभी यह निर्णय लेने पर परिवार के सदस्य मुखिया को दमनकारी / अहंकारी आदि भी कह देते हैं | मुखिया कभी अहंकारी नहीं होता , उसका एक ही उद्देश्य होता है कि उसके परिवार के सदस्य सुसंस्कारित होकर समाज में एक नया उदाहरण प्रस्तुत करे | नियम की बाध्यता को न स्वीकार करके स्वतंत्र रहने की कामना ने एकल परिवारों को बढावा दिया | एकल परिवारों में संस्कृतियों का लोप होता जा रहा है क्योंकि जो स्वयं नियम तोड़कर आये हैं वे नियमों का पालन करवा भी नहीं पाते और उनके बच्चे उच्छृंखल होकर नित्य नये कारनामों को अंजाम देते रहते हैं और दुखी रहते हैं | जहाँ नियमबद्धता को नहीं माना जाता वहीं विध्वंस होता आया है और होता रहेगा | बिना नियम के न तो यह संसार चलता है और न ही कोई समाज या परिवार ही चल सकता है क्योंकि यह सकल सृष्टि ही नियमबद्ध है |