!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! मनुष्य इस सृष्टि का मुकुटमणि है | मनुष्य के लिए यदि अद्भुत , अलौकिक , अद्विती़य , अविस्मरणीय प्राणी कहा जाय तो ये उपमायें भी छोटी ही प्रतीत होती हैं | मनुष्य ने एक ओर जहाँ अपने श्रेष्ठ कार्यों से स्वयं को स्थापित किया है वहीं कुछ नकारात्मक कार्य मनुष्य के लिए घातक भी सिद्ध हुए | इन्हीं नकारात्मक कार्यों में जो सबसे ज्यादा सरल मनुष्य को लगता है वह है किसी की वस्तु को अपना कहना (चोरी करना ) या फिर किसी की नकल करने का प्रयास करना | जिसने भी ऐसा कृत्य किया है वह कहीं न कहीं मुश्किलों में फंसा अवश्य है | द्वापरयुग में एक राजा हुआ करता था जिसका नाम पौण्ड्रक था | वह वासुदेव श्री कृष्ण के स्वरूप की चोरी करके उनकी नकल में स्वयं को चतुर्भुज दिखाने के लिए दो कृत्रिम हाथ लगाकर चला करता था | जिस प्रकार कन्हैया के रथ पर वीरवर हनुमान जी रहा करते थे वैसे ही उसने द्विविद नामक वानर को अपने रथ पर विराजमान कर रखा था | अंत कितना दुखद हुआ यह सर्वविदित है | इतिहास में और भी कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ दूसरों की नकल करने का प्रयास किया | यदि यह नकल सकारात्मक कार्यों के लिए की गई तब तो परिणाम सुखद होता है परन्तु यदि दूसरों की वस्तु पर स्वयं का ठप्पा लगाने का कृत्य किया जाता है तो परिणाम कालनेमि जैसा ही होता है जो छद्मवेषधारी संत बनकर हनुमान जी को धोखा न दे पाया और सद्गति को प्राप्त हुआ | किसी के स्वरूप को अपना कहना , किसी की वस्तु पर अपना नाम लिख देना एक प्रकार की चोरी ही कही जाती रही है ! जिन लोगों ने ऐसा किया उसका परिणाम कुछ पल तो सुखद रहा परंतु अन्त सदैव दुखदायी ही देखने को मिला है | आज के अतिमहत्वाकांक्षी युग में शीघ्रातिशीघ्र धनवान बनने के लिए , विद्वान बनने की लालसा में इसका प्रचलन कुछ अधिक ही बढ गया है | आज बाजारों में नकली वस्तुएं
राष्ट्रीय कम्पनियों का ठप्पा लगाकर धड़ल्ले से बिक रही हैं | लोग इन्हें असली ही समझकर खरीद रहे हैं ! परंतु जब इनके नकली कलकारखानों पर छापा पड़ता है तो स्थिति का आंकलन किया जा सकता है | आज हमारा विद्वतसमाज भी इससे अछूता नहीं रह गया है | यदि हम "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कहें कि सोशल मीडिया के साधन व्हाट्सऐप , फेसबुक आदि ने इसको बढावा कुछ अधिक ही दिया है तो यह अतिशयोक्ति न होगी | आज के कुछ लोग विद्वान बनने की ललक में महापुरुषों के विचारों को लिखकर नीचे अपना लिख देते हैं और उसे इन मंचों पर प्रेषित करके वाहवाही लूट रहे हैं | आश्चर्य तो तब होता है जब लोग किसी श्लोक को लिखकर उसके नीचे भी अपना नाम लिख देते हैं | कुछ लोग मेहनत करके अपने विचार लिखते हैं तो लोग बड़ी चतुराई से उस लेखक के भाव को समझे बिना उसका नाम काटकर अपना नाम लिखकर प्रेषित करके विद्वान बन रहे हैं | हद तो तब हो जाती है जब ऐसे लोग ऐसा करके तर्क भी देने लगते हैं कि :- नाम कटने से क्या हुआ आपके विचार तो
समाज में जा ही रहा है ?? | नाम कटने से लेखक का तो कुछ नहीं होगा परंतु ऐसा करने वाले कहीं न कहीं समस्या में अवश्य फंस जाते है | विद्वान बनने की ललक होना अच्छी बात है परंतु उसके लिए नकारात्मक मार्गों का अनुसरण करके लोग अपने
ज्ञान को और कुण्ठित कर रहे हैं ! जो कि सुखद अनुभूति नहीं कही जा सकती |