!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि में परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को जो भी बल, बुद्धि एवं विवेक दिया है, उसके हृदय में दया, करुणा, सहृदयता, सहानुभूति अथवा संवेदना की भावनायें भरी हैं, वे इसलिये नहीं कि वह उन्हें अपने अन्दर ही बन्द रखकर व्यर्थ चला जाने दे | उसने जो भी गुण और विशेषता मनुष्यों को
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस धराधाम पर विधाता ने अद्भुत मैथुनी सृष्टि की है | नर एवं नारी का जोड़ा उत्पन्न करके दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाया | बिना एक दूसरे के सहयोग के सृष्टि का सम्पादन नहीं हो सकता | नर एवं नारी की महत्ता को दर्शाते हुए भगवान शिव ने भी अर्द्धनारीशवर का स्वरूप धारण किया है
योग एक कला है | योग किसी खास धर्म , समुदाय, आस्था पद्धिति के मुताबिक नहीं चलता है | आमतौर पर योग को स्वास्थ्य और फिटनेस के लिए व्यायाम या थेरेपी के रूप में समझा जाता है | जो भी नियमित रूप से योगाभ्यास करता है वह इसका लाभ प्राप्त कर सकता है | उसका धर्म, जाति और संस्कृत
आज कल सोशल मीडिया लोगो की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है| इसके बहुत सारे फीचर है, जिसके द्वारा आप अपने विचार, सूचना, तस्वीरे, वीडियो आदि एक दूसरे के साथ शेयर कर सकते है| सोशल मीडिया के समाज पर सकारात्मक और नकारत्मक दोनो ही प्रभाव देखने को मिलते है| सोशल मीडिया एक विशाल न
भाषा-व्यक्तित्व का आईना डा. वेद प्रकाश भारद्वाज भाषा एक आईने की तरह होती है। हम जैसी भाषा बोलते हैं या लिखते हैं वैसा ही हमारा व्यक्तित्व होता है जो भाषा के आईने से सबके सामने आ जाता है। इस दृष्टि से यदि हम आज के युवाओं और बच्चों की भाष
भयानक साय है ,जिनके न चेहरे हैं , न नाम हैं | जला दिया लोगों को ,ज़िंदा लोगों को, या खुदा!ज़िंदा दिलों की नाज़ुक सी डोर थी, मज़हब की ज़ोर ने इसे भी तोर दिया| सब भाग रहे थे, सब चीख रहे थे, लोग दर्दनाक मारे गए मुर्दा के बीच में भी
शायरों, कवियों की कल्पना में होता था काँटों वाला बिस्तर, चंगों ने बना दिया है अब भाले-सी कीलों वाला रूह कंपाने वाला बिस्तर। अँग्रेज़ीदां लोगों ने इसे ANTI HOMELESS IRON SPIKES कहा है,ग़रीबों ने अमीरों की दुत्कार को ज़माना-दर-ज़माना सहजता से सहा है। महानगर मुम्बई में एक निजी बैंक के बाहर ख़ाली पड़े
सुदूर पर्वत परबर्फ़ पिघलेगीप्राचीनकाल से बहतीनिर्मल नदिया में बहेगीअच्छे दिन कीबाट जोहतेकिसान के लिएसौग़ात बन जायेगीप्यासे जानवरों कागला तर करेगीभोले पंछियों कीजलक्रीड़ा मेंविस्तार करेगीलू के थपेड़ों की तासीरख़ुशनुमा करेगीएक बूढ़ा प्यासा अकड़ी
सोचता हूँ गढ़ दूँ मैं भी अपनी मिट्टी की मूर्ति, ताकि होती रहे मेरे अहंकारी-सुख की क्षतिपूर्ति। मिट्टी-पानी का अनुपात अभी तय नहीं हो पाया है, कभी मिट्टी कम तो कभी पर्याप्त पानी न मिल पाया है। जिस दिन मिट्टी-पानी का अनुपात तय हो जायेगा, एक सुगढ़ निष्प्राण शरीर उभर आयेगा। कोई क़द्र-दां ख़रीदार भी होगा रखे
हमारी पौराणिक कथाऐं कहती हैं होली की कथा निष्ठुर ,एक थे भक्त प्रह्लाद पिता जिनका हिरण्यकशिपु असुर। थी उनकी बुआ होलिका थी ममतामयी माता कयाधु ,दैत्य कुल में जन्मे चिरंजीवी प्रह्लाद साधु। ईश्वर भक्ति से हो जाय विचलित प्रह्लाद पिता ने किये नाना प्रकार के उपाय, हो जाय ज
यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क: पण्डित महेंद्र पाल जी ने स्वयं रचित निरर्थक विवाद और अपशब्दों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए एक विचित्र तर्क दिया है कि अपशब्द उन्होंने इसलिए प्रयोग किये और वो निरंतर कर रहे हैं क्योंकि वो शिष्य ऋषि दयानन्द के
डाकिया अब भी आता है बस्तियों में थैले में नीरस डाक लेकर, पहले आता था जज़्बातों से लबालब थैले में आशावान सरस डाक लेकर। गाँव से शहर चला बेटा या चली बेटी तो माँ कहती थी -पहुँचने पर चिट्ठी ज़रूर भेजना बेटा या बेटी चिट्ठी लिखते थे क़ायदे भरपूर लिखते थे बड़ों को प्रणाम छो
आज एक चित्र देखा मासूम फटेहाल भाई-बहन किसी आसन्न आशंका से डरे हुए हैं और बहन अपने भाई की गोद में उसके चीथड़े
कुलपति साहब तो क्या उस छात्रा को संस्थान की अस्मिता के लिए अपनी अस्मिता क़ुर्बान करनी चाहिए थी ?बीएचयू के मुखिया को ऐसी बयानबाज़ी करनी चाहिए थी ?सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ता मनुष्य पशुओं से अधिक पाशविक व्यवहार पर उतर आया है साइकिल पर शाम साढ़े छह बजे बीएचयू कैम्पस में हॉस
ग़ौर से देखो गुलशन में बयाबान का साया है ,ज़ाहिर-सी बात है आज फ़ज़ा ने जताया है। इक दिन मदहोश हवाऐं कानों में कहती गुज़र गयीं, उम्मीद-ओ-ख़्वाब का दिया हमने ही बुझाया है। आपने अपना खाता नम्बर विश्वास में किसी को बताया है,
मैं सो रही थी मुझे उठाया गया,नींद में ही गाडी में बैठाया गया !होश में आती उससे पहले ही बताया गया, व्यापारियों का खून चूसने जीएसटी लगाया गया !अधिकारी के दफ़्तर संग लाया गया,टेक्स का सारा दुख जताया गया !टेक्स का सारा दुख जताया गया,मुझे अधिकारी के दफ़्तर लाया गया !बोले पहल तुम करोगी हमारी,दलदल में मुझ बे
कुछ पता न चलेपर कारोबार चले,भरोसा न भी चले,जिंदगी चलती चले,चलन है, तो चले,रुकने से बेहतर, चले,न चले तो क्या चले,यूं ही बेइख्तियार चले,सांसें, पैर, अरमान चले,फिर, क्यूं न व्यापार चले,सामां है तो हर दुकां चले,हर जिद, अपनी चाल चले,अपनों से, गैर से, रार चले,इश्क है, न ह
घर के बाहर अकेली खेल रही वंशिका को देख कर पड़ौस में रहने वाले सत्या ने मुस्कुरा कर पूछा " आज स्कूल नहीं गयी वंशी? वंशी ने भी चहकते हुए जवाब दिया "नहीं भैया, पता है आज बड़े बच्चे टूर पर गये हैं इसलिये मेरी छुट्टी हो गयी, अौर अब मैं पूरा दिन खेलूंगी "। " अरे वाह फिर त
थाने में बैठा कमलू सिपाहियों, पत्रकारों और कुछ लोगो की भीड़ लगने का इंतज़ार कर रहा था ताकि अपनी कहानी ज़्यादा से ज़्यादा लोगो को सुना सके। पुलिस के बारे में उसने काफी उल्टा-सुल्टा सुन रखा था तो मन के दिलासे के लिए कुछ देर रुकना बेहतर समझा।“हज़ारो किलोमीटर लम्बा सफर करते हैं हम ट्रक वाले साहब! एक बार में
नशे, दारु की लथ में अपना पति खो चुकी औरत नशे में ही उसे ढूँढ रही है और पूछ रही है ऐसी क्या ख़ास बात है नशे में जो कितनी आसानी से कितनी ज़िन्दगीयां लील लेता है। इस बार एक कविता और एक नज़्म के साथ पेश है - नशेड़ी औरत! (काव्य कॉमिक्स)Illustrator - Amit Albert :: Poet, Scr