इस काव्य संग्रह में विभिन्न प्रकार की कविताओं का संग्रह किया गया है l मानव की विभिन्न प्रकार की अनुभूतियों, राष्ट्र प्रेम, जीवन संघर्ष, प्रेम भावना, इसी प्रकार की अन्यतम विचारों का प्रस्फुटन मनुष्य को जीवंत करने के लिए और उसकी भावनाओं को सकारात्मक ऊर
पुस्तक में पश्चिमी सभ्यता और भारतीय संस्कृति की विरोधाभासी समानता का मनोरंजक वर्णन है।
केंद्र की मोदी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर रही है। हर सरकार अपने कार्यकाल में कुछ नीतियाँ और कुछ योजनाएँ लाती है। इन योजनाओं और नीतियों की पड़ताल भी समय-समय पर होती रहती है। यह संयोग है कि देश आम चुनावों के मुहाने पर है तो केंद्र की मोदी सरकार की योज
मेरे जीवन के अनुभवों से निर्मित अहसास की दुनिया के कुछ शब्द ,जो गजल के रूप में ढलकर मेरे दिल से फूट पड़े !
भारत सदैव विश्व के सभी सताए हुए लोगों की शरणस्थली रहा, उसी के नागरिकों को उसी की भूमि पर अवसरवाद के इस खेल ने शरणार्थी बना दिया। आज हमें एक मजबूत इच्छाशक्ति वाली मानवतावादी सरकार मिली है, जो इन पीडि़तों एवं शोषितों को सहारा देने के लिए सर्वसम्मति से
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यह पुस्तक मेरी कविताओं का संग्रह है। सभी पढ़ें और आनंद लें।
आखिर 1 अकबर रोड ग्रुप पंजाब/खालिस्तान समस्या का क्या अंतिम समाधान चाहता था? अकाली दल के उदार नेताओं से बातचीत कर समझौते तक पहुँचने की संभावना को मई 1984 के आखिर तक क्यों अधर में रखा गया, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार में कुछ ही दिन रह गए थे? आखिर कैसे, जिस रॉ
कोरोनावायरस के चलते देश में लाक डाउन लगा हुआ है। जिसके चलते अन्य राज्यों में बसे हुए मजदूरों का पलायन हो रहा है। और मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर चल पड़े हैं। इन्हीं मजदूरों पर केंद्रित मेरी ये कविता है। बस चले जा रहे हैं। बे
तू वीर है या वीणा सह जाती है सब पीड़ा करुण तरंगों को सहना है क्या तेरे लिए क्रीडा ? नर देता बांध तुझ पर करुणा के डोर को तू शाह समझ लेती क्यों इस चोर को इस नर को क्यों सुनाती करुणा रूपी गान को जो जरा भी ना देता तरजीह तेरे आन को त
हिन्दी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय हिन्दी के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान,
इसमे स्त्री की विमर्शता एवं मन के भावो को अपनी क़लम के माध्यम से व्यक्त किया हैं.
यह दीपावली में सुरन की सब्जी क्यों बनती है उस पर आधारित हैं
पुराने जमाने में बड़ी बड़ी मूंछें रखते थे ,और उस मंच की अहमियत होती थी , कई लोग एक मंच के बाल के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाते थे ,
यह कहानी आज के शिक्षित युवाओं की मनो व्यथा को दर्शाता है। वैसे तो यह कहानी लंबी नहीं है, परन्तु.....इसमें समाज में फैले हुए वैमनस्यता एवं उसके कारणों को समाहित किया गया है। साथ ही यह भी दिखाने की कोशिश की गई है, कि आज का युवा चाहे, तो कुछ भी कर सकता
हरिनारायण मिश्रा एक पंडित थे। बनारस के रहने वाले थे । उनका छोटा बेटा पढाई करके अमेरिका चला जाता है । वह अपने पिता के कहे अनुसार कब क्या करना है और कब क्या नही करना है को मानते थे । उनके पिता अपने ज्योतिष ज्ञान के अनुसार ही अपने बेटे को निर्देश देते